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जैन विद्या 26
उच्छाह
भावणासं - पसंस - इसमें द्वितीय चतुर्थ गण जगण हैं और समस्त पद
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सामान्य गाथा की तरह हैं।
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जघनचपला गाहा - इसका प्रथम एवं द्वितीय चरण गाथा युक्त हो और तृतीय एवं चतुर्थ चरण में द्वितीय और चतुर्थ गण जगण (ISI) से समन्वित हो।
4. बोह पाहुड - इस पाहुड में 61 गाथाएँ हैं। उनमें लज्जा, विज्जा, खमा, देही, गौरी, धत्ती, चुण्णा, छाया, कंति, महामाया, कित्ति आदि गाथाएँ हैं ।
देखें लज्जा गाहा का उदाहरण
णिग्गंथा णिस्संगा, णिम्माणासा अराय णिद्दोसा । णिम्ममणिरहंकारा, पव्वज्जा एरिसा भणिया ।। 49 । । बो. पा.
5. भाव पाहुड - इस पाहुड में 164 गाथाएँ हैं। उनमें लज्जा, विज्जा, खमा, देही, गोरी, धत्ती, चुण्णा, छाया, कंति आदि कई गाथाएँ हैं। विपुला का प्रयोग 25, 27, 35, 42, 124 गाथाओं में है। इसमें अनुष्टुप छंद का भी प्रयोग हुआ है।
अनुष्टुप - अट्ठक्खर सुसंजुत्ता पंचमलहु-छट्टग्गू।।
अनुष्टुप छंद में आठ-आठ अक्षर होते हैं। पंचम लघु, छठा गुरु के होने पर प्रथम चरण में अंतिम गुरु होते हैं और द्वितीय चरण के अंत में दीर्घ ह्रस्व-दीर्घ (SIS) होता है। यथा
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एगो मे सस्सदो अप्पा, णाण - दंसण - लक्खणो ।
SSS SIS SS ऽ। SIS SIS
सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोग SSS SIS SS SS ऽ ऽ ।
गाहू - पुव्वद्धे उत्तद्धे सत्तग्गल मत्त वीसाइँ ।
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लक्खणा । 159।। भा.पा.
SIS
छट्टमगण पअमज्झे गाहू मेरुव्व जुअलाई 111 / 521 1 प्रा. पै.
गण दो लघु (मेरु) रूप हो। यथा -
जिसके पूर्वार्द्ध एवं उत्तरार्ध में 27-27 मात्राएँ हों तथा दोनों अर्धालियों का छठा
णवविहबंभं पयडहि, अब्बंभं दसविहं पमोत्तूण |
मेहुण - सण्णासत्तो भमिओसि भवण्णवे भीमे ।। 98।। भा.पा.