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होते हैं जिससे मानव समाज प्रभावित होता है, तथा समाज कल्याण के साथ देश में शान्ति का वातावरण उपस्थित होता है । भजनोपदेश एवं कीर्तनों के द्वारा समाज का मनोरंजन होता है। एकांकी अभिनय, नाटक एवं तीर्थ यात्रा की तथा समाज कल्याण की फ़िल्मों द्वारा समाज को शिक्षा दी जाती है । कवि सम्मेलनों के माध्यम से देश में नवजागरण किया जाता है।
इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रान्तों के विविध नगरों में श्री जिनबिम्ब पच कल्याण प्रतिष्ठा गजरथ परिक्रमा महोत्सव, मानस्तम्भ प्रतिष्ठा महोत्सव, विश्वशान्ति महायज्ञ भी प्रतिवर्ष यथायोग्य होते रहते हैं। इन विशिष्ट समारोहों के शुभावसरों में भी सभी कार्य ऊपर की ही भाँति होते हैं। इन महोत्सवों में सहस्रों मानव उपस्थित होते हैं और अन्तिम गजरथ परिक्रमा के दिन तो एक लक्ष (लाख) से भी अधिक संख्या यात्रियों की हो जाती है। ये पंचकल्याणक महोत्सव 24 तीर्थंकरों के शास्त्रानुकूल विधि-विधान से सम्पन्न होते हैं, वह भी 'विशेष पूजा' का एक प्रकार है। इस प्रकार सामूहिक पूजा-विधानों और पंचकल्याणक पूजा महोत्सव का विशेष प्रभाव, महत्त्व, देश और समाज का सुधार देखकर हमारे मानस में यह भावना उद्भूत हुई कि 'जैन पूजा - काव्य' पर शोध कार्य करना चाहिए। उसी की निष्पत्ति प्रस्तुत प्रबन्ध है ।
नास्तिकता का परिहार करने के ध्येय से भी यह शोध प्रबन्ध लिखा जा रहा है। कारण कि सर्वज्ञ परमात्मा और उनकी अमृतवाणी पर किसी मानव की आस्था दूर न हो जाए, तथा जो परमात्मा की उपासना करते हैं उनकी आस्था अतिदृढ़ हो जाए, इस पवित्र दृष्टि से यह शोध प्रबन्ध लिखा गया है।
शिष्टाचार परम्परा सदैव चलती रहे, उसका कभी विच्छेद न हो जाए इस ध्येय से यह शोध प्रबन्ध प्रस्तुत है अर्थात् शिक्षित सभ्य पुरुष परमात्मा का स्मरण, कीर्तन, प्रणाम, पूजा आदि रूप उपासना सदैव करते/कराते रहें और भारतीय साहित्य कं विकास और उन्नति के लिए लेखन की परम्परा का विच्छेद न हो जाए इस पवित्र लक्ष्य से भी यह शोध प्रबन्ध उदित हैं
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जिन सर्वदर्शी परमात्मा ने विश्व के कल्याण के निमित्त मानवों को सन्मार्ग दर्शाया, अपनी दिव्यवाणी द्वारा सम्बोधित किया, जिनकी कृपा से शासन आदि महान् कार्य नीतिपूर्वक संचालित किये जा रहे हैं, उनके प्रति स्तुति, प्रणति, भक्ति आदि उपासना के द्वारा कृतज्ञता प्रकाशित करना मानवों का कर्तव्य हैं। नीतिकारों का कथन भी है न हि कृतयुपकारं साधवो विस्मरन्ति' इस पावन लक्ष्य से भी यह शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया है।
समीचीन श्रद्धा, ज्ञान, सदाचार, विनय, सत्य, संयम आदि गुणों की प्राप्ति के लिए एवं अज्ञान को दूर कर पूजा-स्तुति, उपासना के ज्ञान को प्राप्त करने के पावन
34 [जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन