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चाहे जिस तरह हो दूसरोंको भी अच्छा लगना चाहिए। मालूम होता है कि हमने इस जबर्दस्तीकी युक्तिसे चारों ओर केवल दुःख विस्तार करनेकी ही ठान ली है। ___ जो हो, प्रकृतिके द्वारा जो कुछ किया जाता है वह हमारे द्वारा किसी भी तरह नहीं हो सकता । इस लिए इस प्रकारका हट नहीं करके कि 'मनुष्यकी सारी भलाइयाँ केवल हम बुद्धिमान लोग ही करेंगे' हमें प्रकृतिदेवीके लिए भी थोडासा मार्ग छोड़ देना उचित है । प्रारंभमें ही ऐसा करनेसे अर्थात् बालकोंको प्रकृतिके स्वाधीन राज्यमें विचरण करने देनेसे सभ्यताके साथ कोई विरोध खड़ा नहीं होता और दीवाल भी पक्की हो जाती है। ऐसा न समझ लेना चाहिए कि इस प्रकिातक . शिक्षासे केवल बच्चोंको ही लाभ होता है । नहीं, इससे हमारा भी उपकार होता है । हम अपने ही हाथोंसे सब कुछ आच्छन्न कर डालते हैं और धीरे धीरे उसासे अपने अभ्यासको इतना विकृत बना लेते हैं कि फिर स्वाभाविकको किसी प्रकार भी सहज दृष्टिसे नहीं देख सकते । हम यदि मनुष्यके सुन्दर शरीरको निर्मल बाल्यावस्थासे ही नग्न देखनेका निरन्तर अभ्यास न रक्खेंगे तो हमारी भी वही दशा होगी जो विलायतके लोगोंकी हो गई है। उनके मनमें शरीरके सम्बन्धमें एक विकृत् संस्कार जड़ पकड़ गया है और वास्तवमें वह संस्कार ही वर्वर और लज्जाके योग्य है; बच्चोंको नग्न रखना वर्वरता या लज्जाका विषय नहीं है।
हम मानते हैं कि सभ्य समाजमें कपडेलत्तोंकी और जूते मोजोंकी भी आवश्यकता है और इसीसे इनकी सृष्टि हुई है- किन्तु यह याद रखना चाहिए कि इन सब कृत्रिम आश्रयों या उपकरणोंको अपना स्वामी बना डालना और उनके कारण आपको कुण्ठित या संकुचित कर रखना
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