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२. सर्वोच्च डिटेक्टिव। 'जैन समाजकी एक प्रसिद्ध धनिकसभाने पं. जवाहरलालजी साहित्य शास्त्रीको अपने डिटेक्टिव विभागके सर्वोच्च पदपर प्रतिष्ठित किया है। सुना है कि आपकी कार्यनिपुणतासे प्रसन्न होकर सभा आपको एक मेडल देने वाली है।
३. अनुसन्धान होना चाहिए। आजकाल जैनगजटमें पं० सेठ मेवारामजीकी तूती नहीं बोलती। उनकी यशोगाथायें भी आजकल उनके भक्तोंको सुननेके लिए नहीं मिलती। इससे लोक बहुत उद्विग्न हो रहे हैं। क्या कारण है, इसका शीघ्र ही अनुसन्धान होना चाहिए। ..
४. डेप्युटेशन भेजा जाय। इन्दौरके एक सेठ लगभग २॥ लाखका दानकर चुके, दूसरे ४ लाखकी संस्थायें खोल रहे हैं और एक तीसरे सेठ भी बहुत जल्दी लगभग २ लाख रुपया खर्च करनेवाले हैं। इन खबरोंसे कुछ लोगोंमें बड़ी हलचल मची है। अभी उस दिन प्रतिष्ठा करानेवाले पण्डितोंने एक सभा करके इन दानोंके विरुद्धमें एक प्रस्ताव पास किया। उसमें कहा कि ये दान शास्त्रविहित नहीं हैं। कलियुगी या पंचमकालीय दानोंके सिवा इन्हें और कोई नाम नहीं दिया जा सकता। आर्ष प्रन्थोंमें इस प्रकारके दानोंका कहीं भी उल्लेख नहीं है। इनका परिणाम भी उल्टा होगा । इनकी संस्थाओंमें सब 'एकाकार ' के उपासक तैयार होंगे। प्रभावनाका तरीका लोक भूलते जा रहे हैं। अच्छा हो यदि एक डेप्युटेशन उक्त सेठोंके यहाँ भेजा जाय और उनका ध्यान मन्दिरनिर्माणादि कार्योंकी ओर दिलाया जाय । डेप्युटेशनके मंत्री श्रीयुत प्रतिष्ठा-प्रभाकर महाराज नियत किये गये।
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