Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 122
________________ ३१२ गण जितने ही योग्य होंगे, विद्यालय उतना ही अच्छा और आदर्श बनेगा। ____९ ' सेठ हुकमचन्द बोर्डिंग स्कूल ' अभीतक जुदा चलता था। उसमें लगभग १२५) मासिक खर्च होता था । अब वह विद्यालयमें शामिल कर दिया जायगा; परन्तु यह मालूम न हुआ कि उक्त १२५) मासिक विद्यालय फण्डमें दिया जायगा या नहीं। हमारी समझमें सेठजीके नये दानसे उसका कोई सम्बन्ध नहीं है, इसलिए पहले दानकी रकम इस दो लाखके साथ अवश्य जोड़ देनी चाहिए। आज इतना ही लिखकर हम विश्राम लेते हैं। उदासीनाश्रम और श्राविकाश्रमके विषयमें आगे लिखा जायगा। करो सब देशकी सेवा । बनो मत बन्धुओ न्यारे, प्रभूके हो सभी प्यारे, इकडे हो, करो सारे, सनातन देशकी सेवा ॥१॥ हृदयकी प्रन्थियाँ छोडो, स्वपरके भेदको तोडो, परस्पर प्रेमको जोडो, करो सब देशकी सेवा ॥२॥ प्रगतिके संख बोज हैं, विवेकी वीर जागे है; पडे क्यों नींदमें प्यारो, करो सब देशकी सेवा ॥ ३ ॥ न हो यदि धन तो तनहीसे, न हो यदि श्रम तो धनहीसे, नहीं दोनों तो मनहाँसे, करो सब देशकी सेवा ॥४ करोड़ों अन्न बिन रोते, सिसकते प्राण हैं खोते, बहाकर प्रेमके. सोते, करो सब देशकी सेवा ॥५ पड़े लाखों अँधेरेमें, फिरें अज्ञान-फेरेमें, उजारो ज्ञानके दीपक, करो सव देशकी सेवा ॥६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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