Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 121
________________ ३११ विशेष ज्ञान प्राप्त करनेके लिए औरोंके काव्योंको भी पढ़ना चाहिए। हमारा तो यहाँ तक खयाल है कि हम अपने काव्योंकी खूबियाँ सर्व साधारणमें तब ही प्रकट कर सकेंगे जब औरोंके काव्योंको अच्छी तरह पढ़ेंगे। नाटक और अलंकारके ग्रन्थ तो हमें औरोंके पढ़ना ही पड़ेंगे । क्योंकि इन विषयोंके हमारे कोई अच्छे ग्रन्थ अभीतक प्रकाशित ही नहीं हुए हैं। --- ७. उक्त सब बातोंकी व्यवस्था विद्यालयमें तब हो सकेगी जब उसमें एक अच्छे विद्वानकी नियुक्ति हो । यह विद्वान् प्राचीन और अवीचीन शिक्षाप्रणालीका ज्ञाता हो, शिक्षाविभागमें काम किया हुआ हो, संस्कृतका शास्त्री और अँगरेजीका प्रेज्युएट हो । जहाँतक हम 'जानते हैं जैनियोंमें ऐसे विद्वानकी प्राप्ति नहीं हो सकती है । इसलिए किसी अजैनको ही बुला लेना चाहिए । शायद यह बात कुछ लोग पसन्द न करें परन्तु इसे पसन्द किये बिना विद्यालय कदापि उन्नति न कर सकेगा। इस विषयमें सठेजीको अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए । धर्मशिक्षामें इससे बाधा नहीं आसकती । धर्मशिक्षाका कोर्स कमेटी बना देगी और उसके लिए जैनी पण्डितोंको नियत कर देगी-उसमें उक्त अजैन विद्वान् देखरेख रक्खेगा और पढानके ढंग आदिके विषयमें सूचना करता रहेगा-इसके आगे और कुछ हस्तक्षेप नहीं करेगा । बस, इससे सब डर दूर हो जायगा। ८.विद्यालयमें वृत्तिप्राप्त छात्र चाहे कम रक्खे जावें, पर एक प्रिंसिपाल (अजैन), एक सुपरिटेंडेंट, एक धर्मशास्त्री, एक हिन्दी अध्यापक, एक वैयाकरण और साहित्यज्ञ और एक नैयायिक, इतने कर्मचारी बहुत अच्छी योग्यताके अच्छा वेतन देकर रक्खे जावें । इनके सिवा एक दो अध्यापक और भी रहें । यह स्मरण रखना चाहिए कि अध्यापक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150