________________
२२३
जैनसाहित्यमें अपने ढंगकी यह एक अच्छी पुस्तक है। इसकी समालोचना करनेके हम अधिकारी नहीं; परन्तु यह कह सकते हैं कि जैसी सरल और सुगम भाषामें यह लिखी जानी चाहिए था वैसीमें नहीं लिखी गई । वाक्यरचना और शब्द प्रयोगोंमें भी असावधानी हुई है । अनुभव और आनन्दकी एक स्वतंत्र लेख द्वारा विस्तृत व्याख्या कर दी जाती तो इसके पाठकोंको बहुत लाभ होता ।
११. नवनीत-प्रकाशक, ग्रन्थप्रकाशक समिति, काशी । वार्षिक मूल्य दो रुपया । यह भी हिन्दीका एक मासिक पत्र है। इसके अबतक ७ अंक निकल चुके हैं । ७ वाँ अंक हमारे सामने है । यह रामनवमीका अंक है, इस लिए इसमें अधिकांश लेख और कवितायें श्रीरामके सम्बन्धमें है । लेख प्रायः सभी अच्छे और पढने योग्य हैं । इसके कई लेखक दाक्षिणत्य हैं और वे अच्छी हिन्दी लिख सकते हैं। 'युधिष्ठिरकी कालगणना ' नामक लेखमें विष्णुपुराणके प्रमाणसे कृष्ण और युधिष्ठिरका समय निश्चित किया गया है । श्रीकृष्णजी इस संसारमें १२५ वर्ष रहे । कलिसंवत् १२००के लगभग महाभारतके युद्धके ३६ वर्ष बाद उनका तिरोधान हुआ । भारतके बाद १००० वर्ष तक जरासन्धके वंशमें, १३८ वर्ष प्रद्योत अमात्यके वंशमें, ३६२ वर्ष शिशुनागवंशमें, और १०० वर्ष नवनन्दोंके वंशमें भारतका राज्य रहा । इसके बाद मौर्य चन्द्रगुप्त राजा हुआ। चन्द्रगुप्त ईसाके ३१५ वर्ष पहले हुआ। इससे सिद्ध हुआ कि आजसे १९१३+३१५+१००x१००० +३८+३६२-३६=३७९२ वर्ष पहले श्रीकृष्णका देहान्त हुआ था । एक लेखमें यह सिद्ध करनेका प्रयत्न किया गया है कि रामायणसे महाभारत पीछेका ग्रन्थ है । परन्तु इस लेखकी केवल उत्थानिका ही इस अंकमें है । ऐसे लेख जहाँ तक हो अधूरे प्रकाशित न किये
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org