Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 102
________________ २९२ बहादुर मालूम होता था। जिस तरह शिकारी कुत्तोंसे घिरा हुआ सिंह कुपित होकर उनपर टूटता है और उनका कचूमर बनाने लगता है, उसी तरह वह उनपर भर जोर प्रहार कर रहा है। किसीको गिराकर लातोंसे कुचलता है, किसीको तलवारसे यमलोकका रास्ता दिखलाता है और किसीका पीछा करके फिर लौट आता है। यद्यपि उसकी शक्ति असाधारण थी परंतु प्रतिपक्षियोंकी संख्या इतनी अधिक थी कि उनके सामने वह टिक न सका; उसकी देह बीसों घावोंसे जर्जर होगई और अन्तमें वह मरणोन्मुख होकर धराशायी हो गया। उसके गिरते ही दूसर लुटेरे वहाँसे चल दिये और थोडीही दरमें एक सघन झाडीके भीतर अदृश्य हो गये। ___ इस लडाईमें दश बारह लुटेरे काम आचुके थे। श्रमणने पास जाकर एक एकको अच्छी तरह देखा तो मालूम हुआ कि उस बहादुर लुटेरेके सिवा और सबके प्राण पखेरू उड़ गये हैं । साधुका हृदय भर आया । इस निरर्थक नरहत्यासे उसे बड़ा दुःख हुआ। अब वह इस बातकी चेष्टा करने लगा कि यह मुमूर्ष किसी तरह बच जाय । पास ही एक पानीका झरना बह रहा था। उसमेंसे कमंडलु भर ताजा पानी लाकर उसने एक चुल्लू पानी उसकी आँखोंपरछिडका। लुटेरेने आँखें खोल दी और इस तरह बड़बड़ाना शुरू किया, -वे कृतघ्नी कुत्ते कहाँ चले गये जिन्हें मैंने सैकड़ों बार अपने प्राणोंकी बाजी लगाकर बचाया था । यदि मैं न होता तो न जाने कब किस शिकारीके हाथसे उन कमजोर कुत्तोंकी जाने चली गई होती। आज उन कुत्तोंको क्या वे सब बातें भूल गई । श्रमण--भाई, अब तू अपने उस पापमय जीवनके साथियोंको याद मत कर । इस समय तो अपनी आत्माका चिन्तवन कर और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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