Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 111
________________ 'जीवनमें जो वाक्य अक्षरशः सत्य सिद्ध हुए हैं उनका स्मरण निरन्तर करते रहना। वे वाक्य ये हैं:___ जो दूसरोंको दुःख देता है वह मानो स्वयं आपको ही दुःख देता है और जो दूसरोंकी भलाई करता है, वह अपनी ही भलाई करता है। देहममत्वका परदा हटते ही स्वाभविक सत्यका मार्ग प्राप्त हो जाता है। यदि तुम मेरे इन वचनोंको स्मरण रक्खोगे और उनके अनुसार चलनेका प्रयत्न करते रहागे तो अपनी मृत्युके समय भी तुम अच्छे कमोंकी छाया में रहोगे और इससे तुम्हारा जीवात्मा तुम्हारे शुभ. - कामोंसे अमर हो जायगा। * . दानवीर सेठ हुकमचन्दजीकी संस्थायें । इन्दोरके सुप्रसिद्ध सेठ श्रीमान् हुकमचन्दजीने अपनी चार लाखकी. रकमका निम्न लिखित कार्योंमें बँटबारा करनेका निश्चय किया है: १०००० ) तुक्कोगंज-इन्दोरके उदासीनाश्रमके लिए। ६५००० ) स्वरूपचन्द हुकमचन्द दि० जैन महाविद्यालयकी इमारतके लिए। २०००००.) उक्त विद्यालयके व्यवनिर्वाहके लिए। १५००० ) कंचनबाई दि० जैन श्राविकाश्रमकी इमारतके लिए। ८५००० ) उक्त आश्रमके व्ययनिवाहके लिए। इसके साथ एक औषधालय भी रहेगा। * श्रीयुक्त पं० फतेहचन्द कपूरचन्द लालनकृत 'श्रमण नारद' नामक गुजराती पुस्तकके आधारसे परिवर्तित करके गल्परूपमें लिखित। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150