Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 109
________________ २९९ राजाके लिए तैयार कराया था और तुम्हारा और भी सारा धन इस पासकी गुफामें गढ़ा हुआ है सो उसे जाकर ले जाओ। इसका पता मेरे केवल दो विश्वासी साथियोंको ही था; अब वे मर चुके हैं। . ___ यदि एक भी न्यायमूलक काम मुझसे बन जायगा तो उससे मेरे पापोंका कुछ भाग अवश्य कम होगा, मेरी मानसिक अपवित्रताका भी कुछ अंश धुल जायगा और मोक्षमार्गपर चढ़नेका कोई वास्तविक अवलम्बन मुझे मिल जायगा । इस लिए इस समय मुझे इस न्यायमूलक कार्यके द्वारा ही अपनी भलाईका प्रारंभ कर देना उचित जान पड़ता है। __इसके बाद महादत्तने उस गुफाका पता ठिकाना ठीक ठीक *बतला दिया जिसमें कि पाण्डुका धन गड़ा था और कुछ समयमें उसने श्रमण महात्माकी ही गोदमें सिर रक्खे हुए अपनी जीवनलीला समाप्त कर दी। . . श्रमण महात्माने कोशाम्बीमें जाकर पाण्डुसे सारा वृत्तान्त कहा और पाण्डुने तत्काल ही बहुतसे सिपाहियोंके साथ गुफामें आकर अपना सारा धन निकलवा लिया । इसके बाद उसने महादत्त और दूसरे लुटेरोंके मृतक शरीरोंका सन्मानपुरःसर भूमिदाह किया । उस समय महादत्तके चबूतरेके पास खड़े होकर श्रीपान्थक श्रमणने निम्नलिखित उपदेश दियाः " हम आप ही बुरा काम करते हैं और आप ही उसका फल भोगते हैं। इसी तरह हम आप ही उस बुरेको दूर कर सकते हैं . और आप ही उससे शुद्ध हो सकते हैं । अर्थात् पवित्रता और अपवित्रता दोनों ही हमारे हाथमें हैं । दूसरा कोई भी हमें पवित्र नहीं कर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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