Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 110
________________ सकता है, हमें स्वयं ही पवित्र होनेका प्रयत्न करना चाहिए । बुद्ध भगवानका भी यही उपदेश है। - " हमारे कर्म ब्रह्मा विष्णु ईश्वर अथवा और किसी देवके बनाये हुए नहीं हैं । वे सब हमारे ही किये हुए कामोंके परिपाक हैं। माताके गर्भके समान हम अपने ही कर्मरूपी गर्भस्थानमें अवतार लेते हैं और वे कर्म ही हमें सब ओरोंसे लपेट लेते हैं। हमारे इन कोंमेंसे बुरे कर्म तो हमारे लिए शाप तुल्य होते हैं और भले कर्म आशीर्वाद तुल्य . होते हैं। इस तरह हमारे कर्मोंके भीतर ही मोक्षप्राप्तिका बीज छुपा . हुआ है।" पाण्डु अपना सब धन कोशाम्बी ले गया और उसका बड़ी साव'धानीसे सदुपयोग करने लगा। अपना कारोबार भी अब उसने खूब बढ़ाया और उससे जो आमदनी बढी उसे वह परोपकारके कामोंमें जी खोल करके खर्च करने लगा। एक दिन जब वह मरणशय्यापर पड़ा था, तब उसने अपने घरके सब पुत्रपुत्रियों और पोते पोतियोंको अपने पास बुलाकर कहाः___ मेरे प्यारे बालको, कभी किसी कामको निराश होकर नहीं छोड़ देना । यदि किसी काममें सफलता प्राप्त न हो तो उसका दोष किसी . औरके सिर न डालना । अपनी असफलता और दुःखोंके कारणोंका पता अपने ही कोंमें लगाना चाहिए और उनके दूर करनेका यत्न करना चाहिए। यदि तुम अभिमान या अहंकारका परदा हटा दोगे तो उन कारणोंका पता बहुत जल्दी लगा सकोगे और उनका पता लग जायगा तब उनमेंसे निकलनेका मार्ग भी तुम्हें बहुत जल्दी सूझ जायगा। दुःखके उपाय भी अपने ही हाथमें हैं। तुम्हारी आँखके आगे -मायाका परदा न आजाय, इसका हमेशा ख़याल रखना और मेरे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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