Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 106
________________ २९६ तेरे पास आयगी और तुझे इन दुःखोंसे छुड़ाने शीघ्रका प्रयत्न करेगी। परन्तु जब तक तेरे मनमेंसे देहममत्व, क्रोध, मान, कपट, ईर्षा और लोभ नष्ट नहीं हो जायेंगे, तब तक तू समस्त दुःखोंसे छुटकारा नहीं पा सकेगा! ___ कदन्त बहुत ही क्रूरस्वभावी था, इसलिए वह यह उपदेश सुनकर चुप हो रहा । बुद्धदेव सर्वज्ञ थे। उन्हें कदन्तके पूर्व जन्मके सारे कर्म हथेली पर रक्खे हुए आँवलेके समान दिखने लगे। उन्होंने देखा कि कदन्तने एक बार थोडीसी दया की थी। वह एक दिन जब एक जंगलमेंसे जा रहा था, तब अपने आगेसे जाती हुई एक मकरीको देखकर उसने विचार किया था कि इस मकरी पर पैर देकर नहीं चलना चाहिए, क्योंकि यह बेचारी निरपराधिनी है । इसके बाद बुद्धदेवने कदन्तकी दशा पर तरस खाकर एक मकरीको ही जालके एक तन्तुसहित नरकमें भेजा । उसने कदन्तके पास जाकर कहा,-ले इस तन्तुको पकड़ और इसके सहारे ऊपरको चढ़ चल । यह कहकर मकरी अदृश्य हो गई और कदन्त बड़ी कठिनाईसे अतिशय प्रयत्न करके उस तन्तुके सहारे ऊपर चढ़ने लगा । पहले तो वह तन्तु मजबूत जान पड़ता था परन्तु अब वह जल्दी टूट जानेकी तैयारी करने लगा । कारण, नरकके दूसरे दुखी जीव भी कदन्तके पीछे उसी तन्तुके सहारे चढ़ने लगे थे। कदन्त बहुत घबड़ाया । उसे जान पड़ा कि यह तन्तु लम्बा होता जाता है और वजनके मारे पतला पडता जाता है । हाँ, यह अवश्य है कि मेरा बोझा तो किसी तरह यह सँभाल ही ले जायगा । अभी तक कदन्त ऊपरहीको देख रहा था, परन्तु अब उसने नीचेकी और भी एक दृष्टि डाली । जब उसने देखा कि दलके दल नारकी मेरे ही तन्तुके सहारे ऊपर चढे आ रहे हैं, तब उसे चिन्ता हुई कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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