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अवस्था तक जीवित रह सकता है । छान्दोग्य उपनिषत्में कहा है . कि ४८ वर्षकी अवस्था तक ब्रह्मचर्य पालन करनेवाला पवित्रात्मा ४०० वर्ष तक जी सकता है ! २ मानासिक विश्वास-सदा यह विश्वास रक्खो कि हम बहुत काल तक जीते रहेंगे । एक ऐसे काल्पनिक चित्रको अपने हृदयमें सदा ही अंकित किये रहो कि जो शतवर्षायुष्क, स्वस्थ और सुन्दर हो। इससे न्यून जीवनकी इच्छा कभी मत करो। अपनी शक्तिपर विश्वास रक्खो। ३ उत्तमस्वभावअपनी आदतोंको ऐसी बनाओ जिससे तुम्हारी मानसिक स्थिति सदैव आनन्दमय, उत्साहयुक्त, दृढ, साहसपूर्ण, उच्चभावनामय रहे और जीवनमें नये अणु पैदा होनेसे जीवनी शक्ति बढ़ा करे । जीवनक्रियाकी अन्तरायस्वरूप बुरी आदतोंको छोड़ दो । ४ एकाग्रता प्रत्येक अच्छे विषयमें मनको एकाग्र करनेका अभ्यास करो । किसी भी कार्यको लापरवाहीसे या आफत टालनेके ढंगसे मत करो । ५ व्यायाम-शक्तिके अनुसार नियमित रूपसे व्यायाम या कसरत किया करो जिससे शरीर यौवनपूर्ण और सुदृढ बना रहे। ६ निश्चित उद्देश्य-अपने जीवनका एक निश्चित उद्देश्य रक्खो । लक्ष्यहीन मन बिना पतवारके जहाज़ समान है ।७ श्वासोच्छास क्रिया--- श्वास लेनेकी शक्तिको अच्छी तरहसे बढ़ाओ । खूब स्वच्छ और ताजी हवाका सेवन करो। जिस कमरेमें हवाका यथेच्छ विहार न होता हो, उसमें कभी मत सोओ। ८ घूमना फिरना-निरन्तर दूर दूर तक घूमनेको जाओ। उस समय अच्छी तरहसे श्वास प्रश्वास लो, शरीरको ढीला , रक्खो और प्राकृतिक सौन्दर्यका अवलोकन करो जिससे. नवीन उत्साह
और उमंग पैदा होती रहे । ९ स्नान---शारीरिक और श्वासोच्छासक व्यायामके बाद प्रतिदिन ठंडे जलसे स्नान करो। सप्ताहमें दो.
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