Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 91
________________ २८१ उसने चावलके थैले फेंककर किसानकी गाड़ीको एक तरफ धकेल दिया और अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी । हाय ! इस संसार में गरीबका सहायक कोई नहीं । अपने थोडेसे लाभके पीछे दूसरोंका सर्वस्व नष्ट कर देनेवाले धनोन्मत्तोंकी उस समय भी कमी न थी । गरीबोंके रक्षकके बदले भक्षक बननेवाले अमीरोंसे यह संसार कभी खाली नहीं रहा और शायद आगे भी न रहेगा। - इतना अवश्य है कि उस समय बौद्ध धर्मके श्रमणोंका दयामय हस्त गरीबों की सहायता के लिए सदा सन्नद्ध रहता था । वे धार्मिक विवादोंसे जुदा रहकर निरन्तर मनुष्यमात्रके सामान्य हितकी चिन्तामें रहते थे । वे अपने मन वचन और शरीरका उपयोग मुख्यतः परोपI - कार के ही कामों में करते थे । —— ज्यों ही सेठकी गाड़ी आगे चलनेको हुई त्यों ही श्रमण नारद उस परसे कूद पड़े और बोले : " सेठजी, माफ कीजिए, अब मैं आपके साथ नहीं चल सकता | आपने विवेकबुद्धिसे मुझे एक घंटे तक गाड़ी में बिठाया, इससे मेरी थकावट दूर हो गई। मैं आपके साथ और भी चलता; परन्तु वह किसान जिसकी कि गाडीको उलटा करके आप आगे बढते हैं आपका बहुत ही निकटका सम्बन्धी है। मैं इसे आपके ही पूर्वजोंका अवतार समझता हूँ । इस लिए आपने मेरे साथ जो उपकार किया है उसका ऋण मैं आपके इस निकट बन्धुकी सहायता करके चुकाऊँगा । इसको जो लाभ होगा, वह एक तरह से आपका ही लाभ है । इस किसानके भाग्यके साथ आपकी भलाईका बहुत गहरा सम्बन्ध है | आपने इसे कष्ट पहुँचाया है, मैं समझता हूँ कि इससे आपकी बहुत बड़ी हानि हुई है और इसलिए मेरा कर्तव्य है कि आपको इस हानिसे बचाने के लिए - आपका भला करनेके लिए 1 1 मैं अपनी शक्तिभर इसकी सहायता करूँ ।" For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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