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सेठने श्रमणकी इस मार्मिक उक्तिपर कुछ ध्यान न दिया। उसने सोचा कि श्रमण सीमासे अधिक भला है, इसी लिए इसकी भलाई करनेके लिए तत्पर होता है । इसके बाद उसकी गाडी आगे चल दी।
(२) श्रमण नारद किसानको नमस्कार करके उसकी गाडीके ठीक करानेमें और भीगे हुए चावलोंको जुदा करके शेष चावलोंके एकडे करनेमें सहायता देने लगे। दोनोंके परिश्रमसे काम बहुत शीघ्रतासे होने लगा। किसान सोचने लगा कि सचमुच ही यह श्रमण कोई बड़ा परोपकारी महात्मा है। क्या आश्चर्य है, जो मेरे भाग्यसे कोई अदृश्य देव ही श्रमणके वेषमें मेरी सहायताके लिए आया हो। मेरा काम इतनी जल्दी हो रहा है कि मुझे स्वयं ही आश्रर्य मालूम होता है । उसने डरते डरते पूछा-श्रमण महाराज, जहाँतक मुझे याद है मैं जानता हूँ कि इस सेठकी मैंने कभी कोई बुराई नहीं की, कोई इसे हानि भी नहीं पहुँचाई, तब आज इसने मुझपर यह अन्याय क्यों किया ? इसका कारण क्या होगा ? - श्रमण-भाई, इस समय जो कुछ तू भोग रहा है, सो सब तेरे किये हुए पूर्व कर्मोंका फल है। पहले जो बोया था उसे ही अब लुन रहा है।
किसान-कर्म क्या ?
श्रमण-मोटी नजरसे देखा जाय तो मनुष्यके काम ही उसके कर्म हैं । वे ( मनुष्यके कर्म ) उसके इस जन्मके और पहले जन्मोंके किये हुए कामोंकी एक माला हैं । इस मालाके 'मनका' रूप जो विविध प्रकारके कर्म हैं, उनमें वर्तमानके कामोंसे और विचारोंसे फेरफार भी बहुत कुछ हो जाता है । हम सबने पहले जो भले बुरे
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