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इस मौकेपर यहाँ तक सिर उठाया कि एक दिन. सभाका काम बन्द रखना पड़ा, सभामंडप उखाडके फेंक देना पड़ा और अन्तमें पुलिस तककी सहायता लेनी पड़ी, तब कहीं जाकर शान्ति हुई और सभाके अधिवेशन किये जा सके! पाठकोंको मालूम होगा कि श्रीयुक्त अण्णापा बाबाजी लढे एम. ए. महाराष्ट्रसभाके प्रधान स्तम्भ हैं । उक्त सभाने अब तक जो कुछ सफलता प्राप्त की है उसमें आपका हाथ सबसे अधिक रहा है। कोल्हापुर बोर्डिगके इस समय आप सेक्रेटरी हैं । आप एक स्वाधीन प्रकृतिके मनुष्य हैं, इसलिए कुछ लोगोंकी
आँखोंमें आप शुरूसे ही खटक रहे हैं। ये लोग नहीं चाहते कि लढे महाशय बोर्डिंगके सेक्रेटरी रहें। इसके लिए वे लगा-तार कई वर्षोंसे प्रयत्न कर रहे हैं; परन्तु सफलता नहीं होती। कई बार सभामें पेश करके भी उन्हें इस विषयमें निराश होना पड़ा है; क्योंकि सभाका बहुमत लढे महाशयके ही पक्षमें होता था। इससे वे बहुत ही चिढ गये थे और जैसे बने तैसे अपना मनोरथ सिद्ध करनेका मौका देख रहे थे । इसी समय सभाका वार्षिक अधिवेशन हुआ
और उक्त मंडलीने जिसमें कि पंडित कल्लापा भरमापा निटवे और श्रीयुत बापू अण्णा पाटील मुख्य हैं-लगभग २०० गुंडोंको एकत्र करके बोर्डिंगको अपने हस्तगत करनेका और लढे सा० को बोर्डिंगसे बलपूर्वक अलग करनेका प्रयत्न किया । जब ये लोग प्रत्यक्ष रूपसे बखेडा करनेके लिए तैयार हो गये, तब अधिवेशनके सभापति श्रीयुक्त जयकुमारजी चवरे, बी. ए., एल एल. बी. और दूसरे मुखियोंने इस झगड़ेको आपसमें ही मिटा डालनेका शक्तिभर प्रयत्न किया। कहा कि आप लोग सभामें यह प्रस्ताव पेश करें कि लढे सा० बोर्डिंगके सैकेटरी न रक्खे जावें और सभा इसका जो फैसला करे उसे सबको मानना
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