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२६६ की और इसके संचालककी प्रशंसाके गीत पढ़े, तब हमें मालूम हुआ कि समाचारपत्रोंसे हमारी हानि भी कितनी हो रही है । एक दूसरी संस्थाके आनरेरी व्यवस्थापक महाशय भी कई विद्यार्थियोंके.साथ अपनी राक्षसी वासनायें तृप्त किया करते थे और अपने पृष्ठपोषकोंकी सहायतासे लोगोंकी दृष्टिमें पुरुषोत्तम बन रहे थे । अभी कुछ ही दिन पहले एकाएक आपकी पैशाचिक लीला प्रगट हो गई और गहरी मार खाकर आप संस्थासे अलग हो गये । यह सब होनेपर भी आश्चर्य यह है कि समाचारपत्रोंने आप पर कलङ्कका एक भी छींटा न पड़ने दिया। एक दो संस्थायें और भी ऐसी हैं जिनके भीतर खूब ही घृणित कर्म होते हैं परन्तु बाहरसे वे बहुत ही उज्ज्वल और पवित्र बन रही हैं। कुछ महात्माओंकी उनपर इतनी गहरी कृपा है कि अभी उनका स्वरूप लोगोंपर प्रगट होनेकी आशा नहीं की जा सकती; परन्तु यह निश्चय है कि सोनेके चमकदार घड़ेमें भरा हुआ भी मैला एक न एक दिन अपनी भीतरी दुर्गन्धिसे प्रगट हुए बिना न रहेगा। अपनी संस्थाओंको इन पापोंसे बचानेके लिए हमें समाचारपत्रोंकी दशा सुधारना चाहिए, अपनी बुद्धि, नेत्र और कानोंको काममें लाना चाहिए और साथ साथ जहाँ संस्थायें हों वहाँके स्थानीय लोगोंका यह कर्तव्य होना चाहिए कि वे उनपर तीक्ष्ण दृष्टि रक्खें और उनकी भीतरी दशाओंसे सर्व साधारणको परिचित करते रहें । समाचारपत्रोंमें विश्वस्त समाचार प्रगट न होनेका एक कारण स्थानीय लोगोंकी उपेक्षा भी है।
४. संस्थाओंको योग्य संचालक नहीं मिलते । हमारे यहाँ नई नई संस्थायें खुल रही हैं और खोलनेका उत्साह भी यथेष्ट दिखलाई देता है; परन्तु यह बड़ी ही चिन्ताकी बात है कि
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