________________
२५५
हैं । यह किसीको अविदित नहीं है कि महाराजा अशोक कैसे प्रभावशाली सम्राट हो गये हैं। पहले वर्णन हो चुका है कि शिलाओं
और स्तंभोंपर उनके अनेक लेख मिलते हैं जिनसे बहुतसी बातें मालूम हुई हैं । जैसे, उनकी राजधानी पाटलीपुत्र थी, उन्होंने बौद्ध 'धर्मका खूब प्रचार किया, उन्होंने कलिंग देशपर विजय पाई और उसे अपने आधीन कर लिया, इत्यादि । इन लेखोंसे महाराजा अशोकके शासनका और कई विदेशी राजाओंका भी परिचय मिलता है। मैसूरमें महाराजा अशोकका एक शिलालेख है जिसमें उनकी धार्मिक शिक्षाओंका सार इस प्रकार लिखा है:-महाराजाधिराजकी यह आज्ञा है:-" पिता और माताकी आज्ञाका पालन अवश्य करना चाहिए; एवं सर्व जीवोंका आदर करना चाहिए; सत्य अवश्य बोलना चाहिए । धर्मके ये ही सुलक्षण हैं और ये अवश्य कार्यरूपमें परिणत होने चाहिए। इसी प्रकार शिष्यको गुरुका आदर अवश्य करना चाहिए और नातेदारोंका उचित सत्कार होना चाहिए यह धर्मका प्राचीन आदर्श है-इससे आयु की वृद्धि होती है और इसके अनुसार मनुष्योंको अवश्य चलना चाहिए ।" श्रवणबेलगोलाका एक लेख यह सूचित करता है कि विजयानगराधिपति हिन्दू राजा. बुक्करायने श्रवणबेलगोलानिवासी जैनियों और वैष्णवोंके पारस्परिक विरोधको शान्त किया और जैनियोंको वैष्णवोंके समान स्वतंत्रता
और रक्षा प्रदान की। बरौत स्तूपके एक लेखमें लिखा है कि उसके द्वारको एक शुङ्गवंशीय राजाने बनवाया। विरंचीपुरमके एक लेखसे यह घालून होता है कि वहाँके राजाने ब्राह्मणों के लिए विवाहका यह नियान बनाया कि वे अपने यहाँके विवाहोंमें केवल कन्यादान ही किया करें और यदि कोई ब्राह्मण अपनी पुत्रीके बदलेमें रुपया स्वीकार
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org