Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 19
________________ २०९ बाधारहित-बेरोक संयोग होना चाहिए । वह ढंकने मूंदनेका समय नही है-उस समय सभ्यताकी जरा भी जरूरत नहीं। किन्तु उस उमरसे ही बच्चोंके साथ सभ्यताकी लड़ाई छिड़ी देखकर बड़ा ही दुःख होता है। बच्चा कपडा फेंक देना चाहता है; परन्तु हम उसे ढंके रखना चाहते हैं। वास्तवमें देखा जाय तो यह झगड़ा बच्चेके साथ नहीं किन्तु प्रकृतिजननीके साथ छिड़ा है। प्रकृतिमें एक बहुत पुराना ज्ञान मौजूद है। जिस समय कोई बच्चेको कपड़ा पहनाया जाता है उस समय प्रकृतिका वही ज्ञान उस बच्चेके रोनेके भीतरसे प्रतिवाद करने लगता है। हम सब उस प्रकृतिजननांके ही तो पुत्र हैं। । चाहे जैसे हो, सभ्यताके साथ थोडेसे अलगावकी ज़रूरत है। बच्चोंको कमसे कम सात वर्षकी अवस्थातक सभ्यताके इलाकेसे जुदा रखना ही चाहिए। ये सात वर्ष हमने बहुत ही कम करके कहे हैं। इस अवस्थातक बच्चोंको न सज्जा ( साज श्रृंगार ) की जरूरत है और न लज्जाकी। इस समय तक · वरता या जंगलीपनकी शिक्षा ही बहुत आवश्यक शिक्षा है-यह प्रत्येक बच्चेको मिलना ही चाहिए। प्रकृति देवीको यह शिक्षा बे-रोक टोक देने दो। इस समय भी यदि बच्चे पृथिवी माताकी गोदमें गिरकर धूल मिट्टीसे अपने शरीरको न रँगेगे, तो उन बेचारोंको यह सौभाग्य और कब प्राप्त होगा ? वे यदि इस उमरमें भी झाड़ोंपर चढकर फल न तोड़ सके, तो हतभागे सभ्यताकी लोकलज्जामें उलझकर झाड पेड़ों और फल फूलोंसे जीवन भर भी. हार्दिक सख्य न जोड सकेंगे। इस समय वायु, आकाश, मैदान, वृक्ष, पत्र, फूल आदिकी ओर उनके शरीर और मनका जो एक स्वाभाविक खिंचाव हुआ करता है-सब ही स्थानोंसे उनके पास जो निमंत्रण आया करता है, उसके बीच यदि कपड़े लत्तोंकी, द्वार दीवालोंकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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