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रुकावट डाल दी जाय तो बच्चोंका सारा उद्यम रुक जाय और सड़ने लगे। क्योंकि जो उत्साह खुला हुआ क्षेत्र पाकर स्वास्थ्यकर होता है, वही बद्ध होकर दूषित हो जाता है ।
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ज्यों ही बच्चे को कपड़े पहनाये जाते हैं त्यों ही उसे कपड़ों के विषय में सावधान रखना पड़ता है -- समझा देना पडता है कि कपडे मैले न होने पावें । बच्चेका भी कुछ मूल्य है या नहीं, यह बात तो हम अकसर भूल जाते हैं; परन्तु दर्जीका हिसाब मुश्किलसे भूलते हैं । यह कपड़ा फट गया, यह मैला हो गया, उस दिन इतने दाम देकर इस सुन्दर अँगरखेको बनवाया था, अभागा न जाने कहाँसे इसमें स्याही के दाग लगा लाया, इस तरह बीसों बातें कहकर बच्चेको खूब चपतें लगाई जाती हैं और कान ऐंठे जाते हैं । इस तरह की शास्ति या दंडसे उसे सिखाया जाता है कि शिशुजीवनके सारे खेलों और सारे आनन्दोंकी अपेक्षा कपड़ोंकी कितनी अधिक खातिर करनी चाहिएखेल कूद और आनन्दसे कपड़ोंका मूल्य कितना अधिक है । हमारी समझमें नहीं आता कि जिन कपड़ोंकी बच्चोंको कुछ भी आवश्यकता नहीं, उन कपड़ोंके लिए बेचारे इस तरह उत्तरदाता क्यों बनाये जाते हैं ? और ईश्वरने जिन बेचारोंके लिए बाहर से अनेक अबाध सुखोंका आयोजन कर रक्खा है और भीतर मनमें अव्याहत सुखोंके भोगनेका सामर्थ्य दिया है, उनके जीवनारम्भके सरल आनन्दपूर्ण क्षेत्रको न कुछ अतिशय अकिंचित्कर पोशाककी ममतासे इस तरह व्यर्थ ही विघ्नसङ्कुल बनानेकी क्या ज़रूरत है? क्या यह मनुष्य सब ही जगह अपनी क्षुद्रबुद्धि और तुच्छ प्रवृत्तिका - शासन फैलाकर कहीं भी स्वाभाविक सुखशान्ति के लिए स्थान न रहने देगा ? यह एक बड़ी भारी जबर्दस्ती की युक्ति है कि जो हमें अच्छा लगता है वह
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