Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 28
________________ २१८ पुस्तक- परिचय | ---- १. प्राचीन भारतवासियोंकी विदेशयात्रा और वैदेशिक व्यापार । - लेखक, पं० उदयनारायण वाजपेयी । प्रकाशक हिन्दीग्रन्थप्रकाशकमंडली, औरैया (इटावा) । पृष्ठ संख्या ७२ । मूल्य आठ आना । यह पुस्तक बड़े ही महत्त्वकी है। इसमें दश अध्याय हैं:१ विदेशयात्रा ( संस्कृतग्रन्थोक्त प्रमाण ), २ विदेशयात्रा ( विदेशीग्रन्थोक्त प्रमाण), ३ प्राचीन भारतवासियोंके एशिया और मिश्रमें उपनिवेश, ४ भारतवर्षीय बौद्धोंका अमेरिकामें धर्मप्रचार, ५ पश्चिम एशिया में भारतवासियोंका राज्य, ७ भारत और फिनिशिया देशका व्यापार, 19 भारत और उसके निकटवर्ती पश्चिमी देशोंका व्यापार, ८ भारत और मिश्रका व्यापार, ९ भारत और रोमका व्यापार, १० भारत और अन्यान्य देशोंका व्यापार 1 इनके पढ़ने से अच्छी तरह विश्वास हो जाता है कि भारतवासी प्राचीन समय में एक संकीर्ण परिधिके भीतर रहनेवाले कूपमण्डूक न थे; वे दूरसे दूर तक के देशों और द्वीपोंमें जाते थे, दूर दूर जाकर बसते थे, राज्य स्थापित करते थे, अपने धर्मोंका और सभ्यताका प्रचार करते थे और इन सब का - योँसे वे आपको सर्वशिरोमणि बनाये थे । इस प्रकारकी पुस्तकों की इस समय बड़ी आवश्यकता है । हमारा उक्त प्राचीन गौरव हममें यथेष्ट उत्साह और कार्यतत्परताकी वृद्धि करता है । पुस्तककी भाषा मार्जित और शुद्ध है । मूल्य बहुत जियाह हैं । मण्डलीको इस बात पर ध्यान देना चाहिए । एक बात और भी है, वह यह कि जिस बंगला. मूल पुस्तकका यह संक्षिप्त और कुछ परिवर्तित अनुवाद है उसके लेखकका नामोल्लेख भी इसमें नहीं किया गया है । बंगला पुस्तकका नाम है 'भारतवासी दिगेर समुद्रयात्रा औ वाणिज्यविस्तार' | Jain Education International For Personal & Private Use Only 1 www.jainelibrary.org

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