Book Title: Jain Dharm Darshan Part 05
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 17
________________ सूत्र के द्वारा इसमें तत्वबोध किया जाता है, अतएव इसका नाम सूत्रकृत है। इसमें 'स्व' और 'पर' समय (मत) की सूचना की गई है इसलिए इसका नाम सूचाकृत है। प्रस्तुत आगम में स्वमत, परमत, जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष आदि तत्वों का विश्लेषण है एवं नवदीक्षित श्रमणों की आचरणीय हित-शिक्षाओं का उपदेश है क्रियावादी-अक्रियावादी-अज्ञानवादी-विनयवादी आदि 363 पाखण्डियों अन्य धर्मावलम्बियों की चर्चा की गई हैं। 3. स्थानांग : ___ यहां स्थान का अर्थ परिमाण दिया हैं। प्रस्तुत आगम में तत्वों को एक से लेकर दस तक की विविध पदार्थों की परिमाण संख्या का उल्लेख है। यह दस अध्यायों में विभाजित है। प्रत्येक अध्याय में जैन सिद्धांतानुसार वस्तु संख्या बताई गई हैं जैसे-प्रथम अध्याय में बताया गया है एक आत्मा, एक अनात्मा, एक मोक्ष, एक परमाणु आदि। दूसरे अध्याय में दो-दो वस्तुओं का विवेचन है जैसे क्रिया दो-जीव क्रिया और अजीव क्रिया, राशि दो - जीव राशि, अजीव राशि, धर्म दो-सागार और अनगार, आत्मा दो-सिद्ध औ संसारी आदि। इसी प्रकार दसवें अध्याय में इसी क्रम से वस्तुभेद दस तक बताये गये हैं और धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों की भी प्ररूपणा की गई हैं। 4. समवायांग : इस आगम का एक ही श्रुतस्कंध है। इसमें अलग-अलग अध्ययन नहीं है। स्थानांग सूत्र में एक से लेकर दस तक की संख्याओं का वर्णन मिलता है। जब कि समवायांग सूत्र 1 से लेकर सौ, हजार, लाख करोड, कोटाकोटि की संख्यावाली विभिन्न वस्तुओं का उनकी संख्या के अनुसार अलग-अलग समवायों क संकलनात्मक विवरण दिया है जैसे प्रथम समवाय में जीव अजीव आदि तत्वों का प्रतिपादन करते हुए आत्मा, लोक, धर्म, अधर्म आदि को संग्रहनय की दृष्टि से एक-एक बताया है। दूसरे समवाय में दो प्रकार के बंध - राग बंध, द्वेष बंध, दो प्रकार के दंड - अर्थदंड, अनर्थदंड इस प्रकार अलग-अलग समवाय में अलग-अलग वस्तुभेद बताये गये है। उसके बाद द्वादशांगी का गणिपिटक के नाम से परिचय दिया है। तत्पश्चात ज्योतिष चक्र, शरीर, अवधिज्ञान, वेदना, आहार, आयुबंध, सहनन संस्थान, तीनों कालों के कुलकर, वर्तमान चौबीसी, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव आदि के नाम इनके माता-पिता के पूर्वभव के नाम, तीर्थंकरों के पूर्वभवों के नाम, उनकी शिबिकाएं, जन्म स्थलियां, दीक्षा देवदूष्य आदि तथा ऐरावत क्षेत्र की चौवीसी आदि के नाम का भी विवरण दिया गया है। यह आगम जैन सिद्धांतों का और जैन इतिहास का महत्वपूर्ण आधार है। 5. व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती सूत्र) द्वादशांगी में व्याख्या प्रज्ञप्ति का पांचवां स्थान हैं। प्रश्नोत्तर शैली में लिखा होने से प्रस्तुत आगम क नाम व्याख्या प्रज्ञप्ति है। इसका प्राकृत नाम वियाह पण्णति है। इसमें गणधर गौतम स्वामी द्वारा भगवान महावीर स्वामी को पूछे गये 36000 प्रश्नों का कथन है। गणधर गौतम स्वामी अनेक प्रकार की जिज्ञासा Private

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