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(5) अनवस्थितता
अनाठापुरियामालिक कला रामापी सामासिकपालमा
5. अनवस्थान - विधिपूर्वक सामायिक नहीं करना। चित्त की अस्थिरता रखना, अनादर पूर्वक सामायिक करना। इस व्रत में श्रावक को प्रतिदिन एक सामायिक तो अवश्य करनी ही चाहिए।
लेकर आओ।
जाओ
पुस्तक बाहर देकर आओ।
- 10. देशावकाशिक व्रत :- छठे दिशा परिमाण व्रत में दिशाओं में जाने-आने की मर्यादा जीवन भर, एक वर्ष, चार मास आदि के लिए की जाती हैं।
देशावकाशिक व्रत में कुछ दिनों, घंटों आदि के लिए मर्यादा की जाती है। यह व्रत आंशिक रूप से गृहस्थ जीवन से निवृत्ति प्राप्त कराता है। जीवन में संयम व त्याग का क्रमिक अभ्यास करने की कला सिखाता है। इसमें मन पर अनुशासन करने व भोग-वृत्तियों व शरीर की प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने का अभ्यास भी होता है।
पूर्व में बताये 14 नियमों का प्रतिदिन चिंतन व उनको धारण करना इस व्रत में भी माना जाता हैं। बाहर से पुस्तक
इस व्रत में पांच अतिचार इस प्रकार है1. आनयन प्रयोग - दिशाओं का संकोच कर लेने से आवश्यकता उत्पन्न होने पर मर्यादित भूमि से बाहर रही हुई वस्तु किसी को भेजकर मंगवाना।
2-प्रेप्स प्रयोग 2. प्रेष्य प्रयोग - मर्यादित क्षेत्र से IA --आनयना प्रयोग
बाहर किसी वस्तु को भेजना। 3-शब्दानुपात 3. शब्दानुपात - सीमा के बाहर
फोन, पत्र, इमेल आदि शब्द संकेत से -
अपना कार्य कराना। भाई जरा इधर
14. रूपानुपात - मर्यादित क्षेत्र के तो आओ।
बाहर रही वस्तु को कोई रूप
(वस्तु) आदि दिखाकर मंगवाना। 5. पुद्गल प्रक्षेप - कंकर, पत्थर, लकड़ी आदि फेंककर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना। 11: पौषधोपवास व्रत :- पौषध का अर्थ है - उपाश्रय, स्थानक आदि धर्म स्थान में रहते हुए उपवास पूर्वक आत्म-चिंतन आदि करते हुए आत्म-रमण करना। धर्म की
अरे।
4-रूपानुपात
एमापन बाजार मे लाओ
5-पुद्गल प्रक्षेप
ध्यान आकर्षितकारमा
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