Book Title: Jain Dharm Darshan Part 05
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 95
________________ शब्दार्थ मज्जम्मि अ- मदिरा की विरति के विषय में और। इंगाली - अंगार कर्म। मंसम्मि अ - मांस की विरति के विषय में तथा। वण - वन कर्म। च - मधु आदि अभक्ष्य एवं अनंतकाय की विरति साडी - शकट कर्म। के विषय में। भाडी - भाट कर्म। पुप्फे अ - फूल के विषय में और। फोडी - स्फोट कर्म। फले अ - फलों के विषय में और। सुवज्जए - श्रावक छोड़ देवे। गंध-मल्ले अ - कस्तूरी, केसर, कपूर आदि गंध के । कम्म - इन पाँच कर्मों को। विषय में तथा पुष्पमाला आदि के विषय में। वाणिज्जं - व्यापार। उवभोग-परिभोगे - भोग उपभोग करने में। चेव - तथा। बीयम्मि-गुणव्वए - दूसरे गुणव्रत में कोई अतिक्रमण दंत-लक्ख-रस-केस-विसविसयं - दंत लाख, रस, केश हुआ हो उसकी। और विष संबंधी। . निंदे - मैं निंदा करता हूँ। एंव - इसी प्रकार सच्चित्ते - सचित्त (सजीव-चैतन्य वाले) खु - वस्तुतः। आहार के भक्षण में। जंत-पिल्लण-कम्मं - यंत्र से पीलने पीसने का काम। पडिबद्धे - सचित्त प्रतिबद्ध आहार के विषय में। निल्लंछणं च - और निलांछन कर्म। अपोल - नहीं पका हुआ। दव-दाणं - दवदान, आग लगाने का काम। दुप्पोलिअं - आधे पके हुए आहार के विषय में। सर-दह-तलाय-सोसं - सरोवर-द्रह तालाब, च - और। झील आदि आहारे - आहार के भक्षण से। को सुखा देने का काम। तुच्छोसहि-भक्खणया - तुच्छोषधि के भक्षण में। च - और। पडिक्कमे - मैं निवृत्त होता हूँ। असई-पोसं - असती पोषण। देवसिअं-सव्वं - दिन संबंधी अतिचारों से। वज्जिज्जा - श्रावक को छोड़ देने चाहिये। भावार्थ : सातवाँ व्रत भोजन और कर्म दो तरह से होता है। भोजन में मद्य मांसादि जो बिलकुल त्यागने योग्य हैं उनका त्याग करके बाकी में से अन्न, जल आदि एक ही बार उपयोग में आने वाली वस्तुओं मद्य का तथा वस्त्र-पात्र आदि बार-बार उपयोग में आने वाली वस्तुओं का परिमाण कर लेना। इसी तरह कर्म (व्यापार धंधा आदि) में अंगार कर्मादि अतिदोष वाले कर्मों का त्याग करके बाकी के कर्मों का परिमाण कर लेना, यह उपभोग परिभोग परिमाण रूप दूसरा गुणव्रत अर्थात् सातवाँ व्रत है। ऊपर की चार गाथाओं में से पहली गाथा में मदिरा, मांस आदि वस्तुओं के सेवन मात्रा की और मांस 1803

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