Book Title: Jain Dharm Darshan Part 05
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 134
________________ जैन धर्म के मुख्य सिद्धान्त 1. लोक अनादि और अनंत है / 2. आत्मा अजर, अमर, अनन्त व चैतन्य स्वरूप हैं। 3. आत्मा अपने कृत कर्मों के अनुसार जन्ममरण करता है। 4. आत्मा विकारमुक्त होकर परमात्मा बन सकता है। 5. आत्मा की अशुद्ध स्थिति संसार और शुद्ध स्थिति मोक्ष है। 6. आत्मा की अशुभ प्रवृत्ति पाप और शुभ प्रवृत्ति पुण्य है। 7. जैन धर्म साधना में जाति - पाँति, लिंग आदि का भेद नहीं रखता। 8. जैन धर्म अनेकान्तवाद की दृष्टि से अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता रखता है। 9. जैन धर्म गुणपूजक है, व्यक्ति पूजक नहीं है / 10. ईश्वर सृष्टि का कर्ता नहीं है। / / इह खलु अणइ जीवे अणइ जीवरस भवे अणई कम्मसंजोगणिव्वत्तिए / / Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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