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कोई लिखित इतिहास तो प्राप्त नहीं होता। परन्तु परम्परागत वार्ता के अनुसार यह कहा जाता है कि आज के ही दिन भगवान के 26वें पट्टधर अन्तिम पूर्वधर आचार्य श्री देवर्द्विगणी क्षमाश्रमण ने कंठस्थ चली आ रही श्रुतज्ञान की परम्परा को पुस्तकारुढ़ करना प्रारंभ किया। ज्ञान पंचमी के दिन ही शास्त्र लिखने की पहली परिपाटी चालू हुई। यह घटना वीर निर्वाण के 980 वर्ष बाद घटी, जो जैन इतिहास की दृष्टि से बड़ी महत्वपूर्ण और युगान्तरकारी है।
जैन धर्म को, जैन तत्वज्ञान को एक पूर्ण वैज्ञानिक और तर्क संगत तत्वदर्शन होने का जो गौरव, जो सम्मान आज के संसार में प्राप्त हो रहा है, इसका विशेष श्रेय आचार्य देवर्दिगणी के इन सत्प्रयत्नों को है जिन्होंने शास्त्र सुरक्षा के लिए एक ऐतिहासिक कार्य ज्ञानपंचमी के इस पवित्र दिन आरंभ किया।
गुणमंजरी-वरदत्त कथा प्राचीन जैन कथा साहित्य में ज्ञानपंचमी कथा में गुणमंजरी और वरदत्त कुमार की कथा प्रसिद्ध है। इस कथा में यही बताया गया है कि ज्ञान की आशातना करने से ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है। जिस कारण प्राणी मूर्ख, मन्द बुद्धि, गूंगा या अज्ञानी रह जाता है।
संक्षेप में वह कथा इस प्रकार है -
पद्मपुर नामक नगर में सिंहदास नाम का सेठ रहता था। उसकी पत्नी का नाम कपूरतिलका था। सेठ की एक पुत्री थी गुणमंजरी। वह जन्म से ही गूंगी और रोगी थी। सेठ ने खूब धन खर्च करके उसकी चिकित्सा करवाई परन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। सेठ-सेठानी पुत्री की यह दशा देखकर बहुत दुःखी रहते थे।
एक दिन नगर में एक आचार्य पधारे थे। आचार्यश्री ने ज्ञान विराधना के कटु फलों पर प्रभावशाली प्रवचन दिया, जिसे सुनकर सेठ सिंहदास ने आचार्य श्री से पूछा - गुरुदेव! मेरी पुत्री गुणमंजरी ने पूर्व जन्म में ऐसा
क्या पापकर्म किया होंगा, जिसके फलस्वरूप यह गूंगी और रोगी बनी है। ___ आचार्यश्री अवधिज्ञानी थे। उन्होंने फरमाया प्राचीनकाल में भरत क्षेत्र के एक गाँव में जिनदेव नाम का सेठ रहता था। उसकी पत्नी थी सुन्दरी। सेठ के पांच पुत्र थे। बड़े होने पर सेठ ने पाँचों पुत्रों को पाठशाला भेजा। बच्चे आलसी और मंद बुद्धि थे। पढाई नहीं करते थे | जब बार-बार समझाने पर भी नहीं समझे तो अध्यापक ने उनको मार लगाई।
बच्चे रोते-रोते घर पर आये। अपनी माँ से शिकायत की - अध्यापक हमें मारता है। माँ ने उन्हें पढ़ाई की प्रेरणा देने के बजाय उलटी पट्टी पढ़ाई - अध्यापक तुम्हारी पिटाई करता है तो तुम पाँचों मिलकर उसको पीट डालो। दूसरे दिन बच्चों ने मिलकर अध्यापक की पिटाई कर दी और दौड़कर घर पर आ गये। माता ने उन्हें शाबाशी दी और पुस्तकें, पट्टी आदि को जला दिया। सेठ ने पुत्रों को पढ़ने के लिए कहा तो सेठानी बोली - मुझे पुत्रों को नहीं पढ़ाना है। ___ पुत्र बड़े हुए तो उनके विवाह की समस्या आ गई। सेठ ने अपनी पत्नी से कहा - "देखो, अब इन मूर्यो को कोई भी अपनी लड़की देने के लिए तैयार नहीं है। यह सब तुम्हारी करनी का फल है।'' इस प्रकार सेठ का सेठानी के साथ झगड़ा होता रहता। वही सुन्दरी सेठानी वहाँ से मरकर यहाँ पर गुणमंजरी बनी है।
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