Book Title: Jain Dharm Darshan Part 05
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 93
________________ हनी अणुव्वर पंचममि धण प्प-सुवन्ने धन्न वत्थु खित्त इत्तो - इसके बाद, यहाँ से, अब I अणुव्वए पंचमम्मि - पाँचवे अणुव्रत के विषय में । (पाँचवे अणुव्रत के अतिचारों की आलोचना ) इत्तो अणुव्वर पंचमम्मि, आयरिअमप्पसत्थम्मि । परिमाण-परिच्छेए, इत्थ पमाय - प्पसंगेणं ||17|| धण-धन - खित्त-वत्थू - रुप्प - - सुवत्रेअ कुविअ परिमाणे दुपए चउप्पयम्मिय, पडिक्कमे देवसिअं सव्वं ।।18।। । आयरिअं - जो कोई अतिचार किया हो। अप्पसत्थम्मि - '- अप्रशस्त भाव के उदय परिमाण-परिच्छेए- परिग्रह परिमाण करने रूप व्रत में अतिचार लगे ऐसा। इत्थ यह। पमाय- प्पसंगेणं प्रमाद के प्रसंग से। कुविअपरिमाणे - धन, धान्य का क्षेत्र, वस्तु का, सोने, चांदी का, शब्दार्थ धण-धन्न-खित्त-वत्थू-रुप्प - सुवन्ने धन, धान्य, क्षेत्र वास्तु, चांदी, सोना। अ - और। 81 कुविअ - कुप्य, तांबा, लोहा आदि अन्य धातुओं के अथवा परिमाणे परिमाण के विषय में । दुपए - द्विपद, दास, दासी आदि मनुष्य तथा पक्षी आदि। चउप्पयम्मि - चतुष्पद, चौपाय, गाय भैंस आदि। भावार्थ : अब पाँचवे अणुव्रत के विषय में (लगे हुए अतिचारों का प्रतिक्रमण करता हूँ।) यहाँ प्रमाद के प्रसंग से अथवा क्रोधादि अप्रशस्त भावों के उदय से परिग्रह परिमाण - व्रत (पाँचवें अणुव्रत) जो अतिचार लगे ऐसा जो आचरण किया हो, उससे मैं निवृत्त होता हूँ ||17|| पडिक्कमे-देवसिअं-सव्वं - दिन संबंधी लगे हुए सब दूषणों से मैं निवृत्त होता हूँ। दुपए उपयम्मी य अन्य धातुओं का अथवा श्रृंगार सज्जा का, मनुष्य, पक्षी तथा चौपाये पशुओं का परिमाण उल्लंघन करने से दिवस संबंधी छोटे-बड़े जो अतिचार लगे हों, उन सबसे मैं निवृत्त होता हूँ ||18|!

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