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अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहियउच्चार-पासवण-भूमि उच्चार पासवण की भूमि को न देखी हो या अच्छी तरह से न पूँजी हो। अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जियउच्चार-पासवण-भूमि पूँजी न हो या अच्छी तरह से न पूँजी हो। पोसहस्स सम्मं अणणुपालणया उपवास युक्त पौषध का सम्यक् प्रकार से पालन न किया हो।
12. बारहवाँ अतिथि संविभाग व्रत - समणे निग्गंथे फासुयएस-णिज्जेणं, असण-पाण-खाइम-साइम, वत्थ पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं, पाडिहारिय, पीढ-फलग-सेज्जा संथारएणं, ओसह-भेसज्जेणं, पडिलाभेमाणे विहरामि, ऐसी मेरी सद्दहणा प्ररूपणा तो है, साधु साध्वियों का योग मिलने पर निर्दोष दान दूँ, तब फरसना करके शुद्ध होऊँ एवं बारहवें अतिथि संविभाग व्रत के पंच अइयारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउं-सचित्त निक्खेवणया, सचित्त पिहणया, कालाइक्कमे, परववएसे, मच्छरियाए, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।।
अतिथि संविभाग जिसके आने की कोई तिथि या समय नियत नहीं है ऐसे अतिथि साधु
* को अपने लिए तैयार किये भोजन आदि में से कुछ हिस्सा देना। समणे
श्रमण साधु निग्गंथे
निर्ग्रन्थ पंच महाव्रत धारी को। फासुयएसणिज्जेणं
प्रासुक (अचित्त) ऐषणिक (उद्गम आदि दोष रहित)। असण-पाण-खाइम-साइम- असन, पान, खादिम, स्वादिम। वत्थ-पडिग्गह-कम्बल- . वस्त्र, पात्र,कंबल। पायपुंछणेणं
पादपोंछन (पाँव पोंछने का रजोहरण आदि)। पाडिहारिय-पीढ-फलग- वापिस लौटा देने योग्य। सेज्जासंथारएणं
(जिस वस्तु को साधु कुछ काल तक रखकर बाद में वापिस लौटा देते हैं)।
चौकी, पट्टा, शय्या के लिए संस्तारक तृण आदि का आसन। ओसह-भेसज्जेणं
औषध और भेषज (कई औषधियों के संयोग से बनी हुई गोलियाँ) आदि। पडिलाभेमाणे
देता हुआ (बहराता हुआ) विहरामि
रहूँ। सचित्त-निक्खेवणया साधु को नहीं देने की बुद्धि से अचित्त वस्तु को सचित्त जल आदि
पर रखना।
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