Book Title: Jain Dharm Darshan Part 05
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 117
________________ रुवाणुवाए बहिया-पुग्गल-पक्खेवे रूप दिखाकर सीमा के बाहर के मनुष्य को अपने भाव प्रकट किये हों। बुलाने के लिए कंकर आदि फेंकना। पाणं 11. ग्यारहवाँ पडिपुण्ण पौषध व्रत - असणं, पाणं, खाइमं, साइमं का पच्चक्खाण, अबंभ सेवन का पच्चक्खाण, अमुकमणि सुवर्ण का पच्चक्खाण, मालावणग्गविलेवण का पच्चक्खाण, सत्थमूसलादिक सावज्जजोग सेवन का पच्चक्खाण, जाव अहोरत्तं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा ऐसी मेरी सद्दहणा प्ररूपणा तो है, पौषध का अवसर आये, पौषध करूँ तब फरसना करके शुद्ध होऊँ एवं ग्यारहवाँ प्रतिपूर्ण पौषध व्रत के पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउं 1. अप्पडिलेहिय दुप्पलेहिय सेज्जासंथारए, 2. अप्पमज्जिय दुप्पमज्जिय सेज्जासंथारए, 3. अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय-उच्चार-पासवण-भूमि, 4. अप्पमज्जिय- दुप्पमज्जिय-उच्चार-पासवण भूमि, 5. पोसहस्स सम्म अणणुपालणया, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।। असणं दाल भात, रोटी, अन्न तथा शरबत, दूध आदि विगय। धोवन पानी। खामई फल मेवा आदि। साइमं लोंग, सुपारी, इलायची, चूर्ण आदि भोजन के बाद खाने लायक स्वादिष्ट पदार्थ। अबंभ सेवन मैथुन (कुशील-व्यभिचार) सेवन। अमुकमणि सुवर्ण मणि, मोती तथा सोने, चाँदी आभूषण आदि। माला फूल माला। वणग्ग सुगन्धित चूर्ण आदि। विलेवण चन्दन आदि का लेप। सत्थ तलवार आदि शस्त्र। मूसलादिक मूसल आदि औजार। सावज्जजोगं पाप सहित व्यापार। शय्यासंथारा सोने आदि का आसन। अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय - सेज्जासंसथारए पौषध में शय्या संथारा न देखा हो या अच्छी तरह से न देखा हो। अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जियसेज्जासंथारए प्रमार्जन न किया हो या अच्छी तरह से न किया हो। 105

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