Book Title: Jain Dharm Darshan Part 05
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 125
________________ poppoTRA पर्युषण का महत्व 1. मैत्री भाव का प्रेरक पर्युषण :- पर्युषण मैत्री भाव का प्रेरक है अर्थात् सब जीवों के प्रति सर्वभाव से मैत्री की भावना करने का पर्व पर्युषण है। 2. उपशम भाव का प्रेरक :- पर्युषण उपशम भाव का प्रेरक पर्व है। इन्द्रिय विषयों और कषायों का जिसमें उपशमन होता है वह पर्व पर्युषण है। 3. तपोभाव का प्रेरक :- पर्युषण तपोभाव का प्रेरक है। चारों ओर से एकचित्त होकर तपस्या के द्वारा अष्ट कर्मों के दहन करने का पर्व पर्युषण है। पर्युषण का महत्वपूर्ण अनुष्ठान :पर्युषण पर्व का सर्वाधिक और महत्वपूर्ण अनुष्ठान है - खमत-खामणा (क्षमापना) खमतखामणा की सहज प्रक्रिया यह है कि जिस समय किसी के प्रति दुर्भावना आ जाए या दुष्कृत हो जाय उसी समय क्षमायाचना कर लें। उस समय संभव न हो तो उस दिवस प्रतिक्रमण में क्षमापना करलें। किसी कारण से वह दिन भी टल जाए तो पाक्षिक प्रतिक्रमण के समय अवश्य क्षमायाचना कर ले। पक्ष तक भी मन की कलुषता न धुले तो चातुर्मास का अतिक्रमण न करें और चातुर्मास का समय भी बीत जाए तो पर्युषण पर्व की संपन्नता तक तो मन का ग्रंथि मोचन अवश्य ही हो जानी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति संवत्सरी महापर्व पर भी क्षमा का आदान-प्रदान नहीं करता है तो वह अपनी धार्मिकता को समाप्त कर देता है। वह भगवान की आज्ञा का विराधक होता है । इस दृष्टि से इस पर्व को ग्रंथि मोचन का पर्व भी कहा जा सकता है। मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा में इस पर्व का विशेष महत्व है। 1666 SHARoa4131

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