Book Title: Jain Dharm Darshan Part 05
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 121
________________ पर्व मानव स्वभावतः उत्सव प्रेमी है । रंग - राग, अमोद - प्रमोद, खान - पान और हँसी - मजाक में वह सहज ही प्रवृत्त होता है और जीवन का आनंद मनाता है। __ इसीलिए कवि ने कहा है - "उत्सवप्रियाः मनुष्याः" अर्थात् मनुष्य उत्सवप्रिय होता है। वह रोज कुछ न कुछ परिवर्तन चाहता है। नित नया परिवर्तन लाते रहना-यह उसका स्वभाव है, उसकी रुचि है। इसलिए वह किसी न किसी बहाने, सामने आए अवसरों का लाभ उठाकर आनंद, खुशियां और प्रसन्नता का जीवन जीना चाहता है। नित्य नवीनता की रुचि ने ही पर्व का आरंभ किया। ‘पर्व' का अर्थ होता है - पवित्र दिन / उत्सव आदि किसी जाति, धर्म या समाज के पर्व को देखकर उसकी संस्कृति, सभ्यता, जीवन स्तर और वैशिष्ट्य को अच्छी तरह से जाना जा सकता है । पर्व अतीत की घटनाओं के प्रतीक होते है, वर्तमान के लिए प्रेरणा स्रोत होते है, और भविष्य में संस्कृति को जीवित रखने वाले होते है। यों तो संसार भर में पर्व मनाए जाते हैं। जहाँ जहाँ मानव सभ्यता है, वहाँ पर्यों की भी परम्परा है। प्राचीन काल में भी नाग महोत्सव, इन्द्र महोत्सव, कौमुदी महोत्सव, गौरी पूजन, वसंतोत्सव आदि कई प्रकार के लौकिक पर्व व त्योहार मनाने के उल्लेख प्राचीन भारतीय साहित्य में प्राप्त होते है। पर्वो का उद्देश्य पर्यों की परम्परा के पीछे कुछ मुख्य उद्देश्य भी होते थे। सबसे प्रथम तो यही उद्देश्य था कि अमुक दिन अमुक देवता की पूजा, उपासना करके उससे अपने अनिष्ट निवारण की प्रार्थना करना तथा उसे प्रसन्न करना। ताकि जीवन में आने वाली भौतिक और आधिदैविक्र विपत्तियों से मानवजाति की रक्षा हो। दूसरी बात, इस बहाने राजा-प्रजा, अमीर-गरीब, क्षत्रिय, वैश्य, ब्राह्मण एवं शूद्र चारों वर्ण बिना किसी भेदभाव के मिल जुलकर, एक साथ बैठकर आनंद, उल्लास मनाएं, नृत्य-गायन करें, सहयोग करें और एक दूसरे के साथ सुख-दुख की चर्चा करें, यह सामुदायिकता की उदात्त भावना भी इस परम्परा से जुड़ी है। दुःख, चिन्ता, उदासी, भय, समस्याएं प्रत्येक के जीवन में रहती है। किन्तु मनुष्य इनसे मुक्ति चाहता है। उन समस्याओं से छुटकारा पाकर कुछ समय के लिए ही सही, वह उन्हें भूलकर हर्ष और उल्लास से समय बिताना चाहता है और उसके लिए पर्व' त्यौहार सबसे अच्छा साधन है। पर्व के प्रकार :पर्व के दो प्रकार होते हैं 1. लौकिक पर्व 2. लोकोत्तर पर्व लौकिक पर्व :लौकिक पर्व, सामाजिक एवं सांस्कृतिक हर्षोल्लास से युक्त होते है। जैसे : दीपावली, दशहरा, होली, 00 100.

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