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(चौथे अणुव्रत के अतिचारों की आलोचना ) चउत्थे अणुव्वयम्मी, निच्चं परदार-गमण-विरईओ । आयरियमप्पसत्थे-इत्थ पमाय- प्पसंगेणं ||15|| अपरिग्गहिआ - इत्तर- अणंग-विवाह तिव्व-अणुरागे । चउत्थवयस्स इआरे, पडिक्कमे देवसिअं सव्वं ||16|| शब्दार्थ
चउत्थे - चौथे। अण्णुव्वयम्मी - अणुव्रत के विषय में।
निच्चं नित्य |
परदार-गमण-विरईओ - परस्त्री गमन विरतिरूप । अणंग काम क्रीड़ा, काम वासना जागृत करने वाली आयरिअं - अतिचार किया हो। अपसत्थे -
क्रिया ।
- अप्रशस्त भाव से ।
इत्थ - यहाँ, अब।
पमाय- प्पसगेणं - प्रमादवश होकर । हुई अथवा शादी न की हुई हो ।
अपंग
प्रणुव्वयाम्म,
अपरिग्गहिया - अपरिगृहीता, किसी ने ग्रहण न की इत्तर - किसी की थोड़े वक्त तक रखी हुई स्त्री के साथ संबंध |
विवाह
-
विवाह - किसी के पुत्र-पुत्री का विवाह करना ।
तिव्वाणुरागे - विषय भोग करने की अत्यंत आसक्ति ।
चउत्थ वयस्स - चौथे व्रत के ।
इआरे - अतिचार।
पडिक्कमे देवसिअं सव्वं दिन में लगे हुए उन सब दोषों से निवृत्त होता हूँ ।
भावार्थ : अब चौथे अणुव्रत के विषय में (लगे हुए अतिचारों का प्रतिक्रमण किया जाता है) यहाँ प्रमाद के प्रसंग से अथवा क्रोधादि अप्रशस्त भाव के उदय होने से नित्य अपनी विवाहित स्त्री के सिवाय कोई भी दूसरी ( अन्य पुरुष से विवाहित संग्रहित स्त्री, कुंवारी अथवा विधवा, वैश्या अथवा पासवान ) स्त्री गमन (मैथुन) विरति में अतिचार लगे ऐसा जो कोई आचरण किया हो, उससे मैं निवृत्त होता हूँ ||15||
चउत्थ
1. किसी की ग्रहण न की हुई अथवा न विवाही हुई हो ऐसी स्त्री से जैसे कन्या, विधवा आदि से संबंध करना।
2. अल्पकाल के लिये ग्रहण करने में आई हुई स्त्री अर्थात् रखात (पासवान) अथवा वैश्या से संबंध करना ।
3. पर स्त्री के साथ काम क्रीड़ा जागृत करने वाली क्रिया जैसे की चुम्बन, आलिंगन कुचमर्दन आदि दूसरी कोई भी
काम चेष्टा करना ।
4. अपने लड़के-लड़की अथवा आश्रितों के अतिरिक्त दूसरों के विवाह आदि करना
-
कराना।
5. विषय भोग करने की अत्यंत आसक्ति ये पाँच अतिचार चौथे व्रत के हैं ||16||
P80ha
अपरिग्गहिआ इत्तर
तिब्व- अणुरागे