Book Title: Jain Dharm Darshan Part 05
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 103
________________ से ध्यानपूर्वक न देखने से प्रमाद करना। ___4. लघुनीति आदि करने की जगह को चरवले आदि से प्रमार्जन न करने से अथवा बराबर प्रमार्जन न करने से प्रमाद करना। 5. भोजन आदि की चिंता करना कि कब व्रत पूरा हो और कब मैं अपने लिये अमुक चीज बनाऊं और खाऊं। उपलक्षण से शरीर सत्कार आदि के विषय में भी ऐसे विचार करने से प्रमाद करना। इस प्रकार इन पाँच अतिचारों में से पौषधोपवास व्रत में कोई अतिचार लगा हो उसकी मैं निन्दा करता हूँ ||29।। (बारहवें व्रत के अतिचारों की अलोचना) सच्चित्ते निक्खिवणे, पिहिणे ववएस-मच्छरे चेव। कालाइक्कम-दाणे, चउत्थे सिक्खावए निंदे ||30।। शब्दार्थ सच्चित्ते - सचित्त वस्तु पर। चेव - और। निक्खिवणे - डालने से, रखने से। कालाइक्कम-दाणे - समय बीत जाने पर करने पिहिणे - सचित वस्तु से ढांकने में। - आमंत्रण से। ववएस - पराई वस्तु को अपनी और चउत्थे- चौथे। ____ अपनी वस्तु को पराई कहने से। सिक्खावए - शिक्षाव्रत में दूषण लगा उसकी। मच्छरे - मात्सर्य ईर्ष्या करने से। निंदे - मैं निंदा करता हूँ। भावार्थ : साधु-श्रावक आदि सुपात्र अतिथि को देश, काल का विचार करके भक्ति पूर्वक देने योग्य अन्न, जल आदि देना यह अतिथि संविभाग नामक चौथा शिक्षाव्रत अर्थात् श्रावक का 1-सचित्तनिक्षेपण | बारहवाँ व्रत है। इसके पाँच अतिचार हैं जो इस प्रकार हैं - ___ 1. साधु को देने योग्य अन्न-पानादि वस्तु को नहीं देने की बुद्धि से अथवा Mrunm m अनाभोग से या सहसाकारादि से सचित्त पदार्थ पर रखकर देना अथवा अचित | वस्तु में सचित वस्तु डाल देना यह पहला सचित निक्षेपण अतिचार है। ROOTOO 2. अचित्त वस्तु को सचित्त वस्तु से ढांक देना यह सचित्त पिधान अतिचार साधु को देने योग्य आहार है। को सचित्त वस्तु के. ऊपर रख-देना। ___3. न देने की बुद्धि से अपनी वस्तु को पराई कहना और देने की बुद्धि से पराई वस्तु को अपनी कहना अथवा साधु की मांगी हुई वस्तु अपने घर होने 2-सचित्तपिधान | पर भी "यह वस्तु अमुक आदमी साधु को देने योग्य आहार को सचित्त वस्तु से ढक देना। की है वहाँ जाकर माँगो''ऐसा कहना अथवा अवज्ञा से दूसरे के पास से दान दिलावे अथवा मरे हुए या जीवित पिता आदि को इस दान (यह किताबें मेरी नहीं हैं इसलिए नहीं दे सकता। 3-पर व्यपदेश 89110

Loading...

Page Navigation
1 ... 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134