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कारण अथवा गृहादिक व्यापार की चिंता के लिये शून्य मन हो जाने से "मैंने सामायिक की है अथवा नहीं?' यह सामायिक पारने का समय है या नहीं ? इत्यादि याद न आवे। ये पांच अतिचार प्रमाद की अधिकता के कारण अनाभोगादिक से होते हैं।
इन पांचों में से कोई भी अतिचार पहले शिक्षाव्रत-सामायिक व्रत में लगा हो तो मैं यहाँ उसकी निंदा करता ||27||
आणवणे - आनयन प्रयोग के विषय में,
बाहर से वस्तु मंगाने से ।
पेसवणे - प्रेष्य प्रयोग के विषय में, वस्तु बाहर भेजने से। बीए - दूसरे । सद्दे - शब्दानुपात के विषय में, आवाज करके उपस्थिति बतलाने से ।
(दसवें व्रत के अतिचारों की आलोचना) आणवणे पेसवणे, सद्दे रूवे अ पुग्गलक्खेवे । देसावगासि अम्मि, बीए सिक्खावए निंदे ||28|| शब्दार्थ
पुग्गलक्खये
पेसवणे
रूवे - रूपानुपात के विषय में, हाथ आदि शरीर के अवयवों
को दिखला करके ।
भावार्थ : श्रावक का दसवाँ व्रत (दूसरा शिक्षाव्रत ) देशावकाशिक है। इस व्रत में छठे व्रत में जो यावज्जीव दिशाओं का परिमाण और सातवें व्रत में भोग-उपभोग का परिमाण किया हो, उसका प्रतिदिन संक्षेप करना होता है ।
आणवणे पेसवणे आणवणे
पुग्गलक्खेवे - पत्थर, कंकड़ आदि वस्तु फेंकने से । देसावगसिअम्मि - देशावकाशिक व्रत के विषय में।
सिक्खावए - शिक्षाव्रत में ।
निंदे - मैं निन्दा करता हूँ।
अथवा सब व्रतों का अमुककाल तक संक्षेप भी इस व्रत से किया जाता है। इस व्रत के पाँच अतिचार हैं।
1. आनयन प्रयोग - नियम की हुई हद के बाहर से कोई वस्तु मंगवानी हो तो व्रत भंग के भय से स्वयं न जाकर किसी के द्वारा उसे मंगवा लेना।
2. प्रेष्य प्रयोग - नियमित हद के बाहर कोई चीज भेजनी हो तो व्रत भंग होने के भय से उसको स्वयं न पहुंचाकर दूसरे के द्वारा भेजना।
3. शब्दानुपात - नियमित क्षेत्र के बाहर रहे हुए किसी व्यक्ति को अपने कार्य के लिये साक्षात् बुलाया न जा सके तो खांसी खखार आदि जोर से शब्द करके उसे अपने स्वरूप कार्य को बतलाना अथवा बुला लेना।
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4. रूपानुपात - नियमित क्षेत्र के बाहर से किसी को बुलाने की इच्छा हुई तो व्रतभंग के भय से स्वयं न जाकर हाथ, मुंह आदि अंग दिखाकर उस व्यक्ति को आने की सूचना दे देना अथवा सीढ़ी आदि पर चढ़कर | दूसरे का रूप देखना।