Book Title: Jain Dharm Darshan Part 05
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 102
________________ 5. पुद्गलक्षेप - नियमित क्षेत्र के बाहर ढेला, पत्थर आदि फेंककर अपना कार्य बतलाना अथवा अभिमत व्यक्ति को बुला लेना। ये पाँच अतिचार दूसरे शिक्षा-व्रत देशावकाशिक व्रत के हैं। इन अतिचारों में से मुझे कोई अतिचार लगा हो तो उनकी मैं निन्दा करता हूँ ।।28।। (ग्यारहवें व्रत के अतिचार) ___ संथारुच्चारविही-पमाय तह चेव भोयणाभोए। पोसह-विहि-विवरीए, तइए सिक्खावए निंदे ।।29।। शब्दार्थ संथार - संथारे की। भोयणाभोए - भोजनादि की चिंता-विचार द्वारा उच्चार - लघुनीति-बड़ी नीति की, पेशाब-टट्टी की। पोसह-विहि-विवरीए पौषध विधि की विपरीतता। विही - विधि। तइए-सिक्खावए - तीसरे शिक्षाव्रत की। पमाय - प्रमाद हो जाने से। निंदे - मैं निंदा करता हूँ। तह - तथा। चेव - इसी तरह। भावार्थ : श्रावक का ग्यारहवाँ व्रत पौषधोपवास नामक तीसरा शिक्षाव्रत है। पौषधोपवास शब्द पौषध+उपवास से बना है। पौष अर्थात धर्म की पुष्टि को धत्ते-धारण करे उसे पौषध कहते हैं। उपवसन का अर्थ है उसके द्वारा रहना। अर्थात् धर्म की पुष्टि को धारण करे, उस आचरण के द्वारा रहना यह पौषधोपवास कहलाता है। अथवा अष्टमी, चौदस आदि पर्व तिथि में सब सांसारिक कार्यों का त्याग कर उपवास करने को भी पौषधोपवास कहते हैं। इस व्रत में आहार, शरीर सत्कार, मैथुन तथा सावध व्यापार इन चारों का त्याग करना होता है। इसके पाँच अतिचार हैं। 1. संथारा तथा वसति आदि चक्षु से नहीं देखने अथवा सावधानी से ध्यान पूर्वक नहीं देखने से प्रमाद करना। 2. संथारा तथा वसति आदि को चरवले आदि से प्रमार्जन ने करने से अथवा बराबर सावधानी से प्रमार्जन न करने से प्रमाद करना 3. लघुनीति (पेशाब) बड़ी नीति (दस्त) आदि करने की जगह को चक्षु से नहीं देखने से अथवा सावधानी NAGARM 90." ers &

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