Book Title: Jain Dharm Darshan Part 05
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 110
________________ खात खनकर धणियाति मोटी वस्तु जानकर लेना सगे संबंधी व्यापार संबंधी निर्भमी तेनाह तक्करप्पओगे विरुद्धरज्जाइक्कमे कूडतुल्ल-कूडमाणे तप्पडिरूवगववहारे सदार-संतोसिए अवसेस-मेहुणविहिं पच्चक्खामि इत्तरियपरिग्गहिया-गमणे दीवार में सेंध लगाकर । मालिक की यानी । 4. चौथा अणुव्रत - थूलाओ मेहुणाओ वेरमणं, सदार संतोसिए, अवसेस मेहुण विहिं पच्चक्खामि, जावज्जीवाए देव देवी संबंधी दुविहं, तिविहेणं, न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा तथा मनुष्य तिर्यंच संबंधी एगविहं एगविहेणं, न करेमि, कायसा एवं चौथा स्थूल स्वदार सन्तोष, परदार विवर्जन रूप मैथुन विरमण व्रत के पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउं - इत्तरियपरिग्गहियागमणे, अपरिग्गहिया गमणे, अनंग कीडा, परविवाह करणे, कामभोगातिव्वाभिलासे, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं || अपरिग्गहिया-गमणे अनंगकीडा परविवाहकरणे कामभोगा-तिव्वाभिलासे मोटी वस्तु के। अधिकारी की जानकारी होने पर भी उसको उठाने का । पारिवारिक जन की बिना आज्ञा कोई वस्तु लेनी पड़े। (व) व्यवसाय संबंधी (तथा) शंकारहित चोर की चुराई हुई वस्तु ली हो। चोर की सहायता की हो। राज्य के विरुद्ध काम किया हो। कूड़ा तोल कूड़ा माप किया हो। वस्तु में भेल संभेल किया हो। अपनी पत्नी में संतोष के सिवाय । शेष सभी प्रकार के मैथुन विधि का । त्याग करता हूँ। अल्पवय वाली परिग्रहीता के साथ गमन करना । या अल्प समय के लिए रखी हई के साथ गमन किया हो। परस्त्री या सगाई की हुई के साथ गमन करना । काम सेवन योग्य अंगों के सिवाय अन्य अंगों से कुचेष्टा करना । दूसरों का विवाह करवाना। कामभोगों की प्रबल इच्छा करना। 98P

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