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बध
(पहले अणुव्रत के अतिचारों की आलोचना)
वह पढमे अणुव्वयम्मी, थूलग-पाणाइवाय-विरईओ।
आयरियमप्पसत्थे, इत्थ पमाय-प्पसंगेणं ।।७।। वह-बंध-छविच्छेए, अइभारे भत्त-पाण-वुच्छेए। पढम-वयस्स इआरे, पडिक्कमे देवसिअं सव्वं ||10||
शब्दार्थ पढमे - प्रथम, पहले।
वह - वध। अणुव्वयम्मी - अनुव्रत के विषय में। बंध - बन्धन। थूलग - स्थूल।
छविच्छेए - अंगच्छेद। पढमे अणुव्वयम्मि पाणाइवाय-विरईओ -
अइभारे - बहुत बोझा प्राणातिपात विरति रूप। लादना। आयरिअं - आचरण किया हो। भत्त-पाण-वुच्छेए - अप्पसत्थे - अप्रशस्त।
खाने पीने में रुकावट इत्थ- इस।
डालना। पमाय-प्पसंगेणं
पढम-वयस्स - पहले व्रत के। प्रमाद के प्रसंग से।
इआरे-अतिचारों के कारण जो कुछ। पडिक्कमे-देवसिअं-सव्वं
- दैनिक इन सब दोषों से मैं निवृत होता हूँ। भावार्थ : अब यहाँ प्रथम अणुव्रत के विषय में (लगे हुए अतिचारों का प्रतिक्रमण किया जाता है) यहाँ प्रमाद के प्रसंग से अथवा (क्रोधादि) अप्रशस्त भावों का उदय होने से स्थूल-प्राणातिपात विरमणव्रत में जो कोई अतिचार लगा हो उससे मैं निवृत्त होता हूँ।
1. वध - पशु अथवा दास-दासी आदि किसी जीव को भी निर्दयता पूर्वक मारना।
2. बन्ध - किसी भी प्राणी को रस्सी, सांकल आदि से बांधना अथवा पिंजरे आदि में बंद करना।
अइभारे 3. अंगच्छेद - अवयवों (कान, नाक, पूंछ, गलकम्बल
आदि) अथवा चमड़ी को काटना-छेदना। 4. अइभारे - बहुत बोझा लादना। परिमाण से अधिक बोझा लादना। 5. भत्त- पाण वुच्छए- खाने-पीने में रुकावट पहुंचाना।
भत्तपाणवुच्छेए इन उपर्युक्त विषयों में से छोटे-बड़े दिन में जो अतिचार लगे हों उन सबसे मैं निवृत्त होता हूँ ।।9-10।।
वध
बन्ध
छविच्छोए
भा
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