Book Title: Jain Dharm Darshan Part 05
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 66
________________ 15. असतीजनपोषणता कर्म - 1 वेश्या आदि के द्वारा धन कमाना, हिंसक प्राणियों का पालना, समाज | विरोधी तत्त्वों को संरक्षण करना आदि। (15) असतीजन पोषणव इस प्रकार से पन्द्रह कर्मादान रुघ पन्द्रह व्यवसाय श्रावक के लिए मन, वचन काया से सर्वथा त्याज्य हैं। . पन्द्रह व्यवसायों के अतिरिक्त भी ऐसे अनेक व्यवसाय हैं जिनसे भी महापाप होता है। जैसे - कसाईखाना, शिकारखाना, मांस विक्रय केन्द्र, मदिरालय आदि का समावेश भी इन पन्द्रह में हो जाता है। 8. अनर्थदण्ड-विरमण व्रत :____मानव अपने जीवन में अनेक ऐसे पापकर्म करता है, जिनके द्वारा उसका अपना कोई हित नहीं होता। जीव को बेवजह दंड देनेवाले इन पाप कर्मों से गृहस्थ को बचाना इस व्रत का मुख्य उद्देश्य है। __अपने स्वयं के जीवन निर्वाह हेतु तथा अपने आश्रित परिवार के पालन-पोषण हेतु जो सावध क्रियाएं करनी पड़ती है, उनमें हिंसा होती है उसे अर्थदण्ड कहा है। उनके अतिरिक्त शेष समस्त पापपूर्ण प्रवृत्तियों से निवृत होना अनर्थदण्ड विरमण व्रत हैं। स्वयं के लिए या अपने पारिवारिक व्यक्तियों के जीवन निर्वाह हेतु अनिवार्य पाप प्रवृत्तियों में _अतिरिक्त शेष समस्त पापपूर्ण प्रवृत्तियों से निवृत्त होना अनर्थदण्ड विरमण व्रत हैं। पीना अपध्यानाचारत रौद्रध्यान शास्त्रकारों ने अनर्थदण्ड रूप प्रवृत्तियों के चार आधार स्तम्भ बताये हैं - 1. अपध्यान - अपध्यान का अर्थ है - अप्रशस्त ध्यान। बुरे A शराब विचारों में मन को एकाग्र करना। अशुभ चिंतन मनन करना। प्रिय वस्तु के वियोग एवं अनिष्ट वस्तु के संयोग होने पर शोक करना। -प्रमादाचरित 2. प्रमादाचरण - कुतूहल वश अश्लील गीत, नृत्य, नाटक 9- पापोपदेश आदि देखना, आसक्तिपूर्वक कामशास्त्र विषय कषायर्द्धक साहित्य पढ़ना, जुआ खेलना, मद्यपान करना, प्राणियों को परस्पर लड़ाना आदि सब प्रमादाचरण हैं। 3. हिंसादान - हिंसा में सहायक अस्त्र-शस्त्र या अन्य साधन ा की प्रेरणा किसी को देना। 4. पापोपदेश - पापकर्म का उपदेश देना। पाप कर्म 3-हिंसाप्रदान देना PAGAIN

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