Book Title: Jain Dharm Darshan Part 05
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 61
________________ CD इत्वरिक परिग्रहीतायमन इसके पाँच अतिचार इस प्रकार है : 1. इत्वरिक परिगृहीतागमन :- कुछ समय के लिए धन आदि देकर परस्त्री के साथ गमन करना। 2. अपरिगृहीतागमन :- विधवा, वेश्या परिणीतायमचा कुछ समय के लिए धन या कुमारी आदि के साथ काम-सेवन देकर परस्त्री के साथ रहना । करना। CD पा-विवाहका विवाहकानको कार्यकारना । 3. अनंगक्रीडा :- मैथुन बिना अन्य काम प्रधान चेष्टाएं। 4. परविवाहकरण :- अपनी संतान के अतिरिक्त दूसरों के विवाह संबंध काम भीगायतीवाभिलाषा धालील साहित्यपढ़ना करवाना। फिल्मदिवस विश्या के साथ काम से 5. कामभोगतीव्राभिलाषा :- विषय भोग और कामक्रीडा में तीव्र आसक्ति रखना। इन्हीं के अंतर्गत अश्लील साहित्य पढ़ना, चित्र, फिल्म आदि देखने के दोषों का समावेश हो जाता है। 5. अपरिग्रह व्रत अथवा स्थूल परिग्रह परिमाण व्रत : इस व्रत के अन्तर्गत श्रावक को यह बताया गया है कि संतोष गुण की प्राप्ति हेतु वह अपनी सम्पत्ति अर्थात् जमीन-जायदाद, बहुमूल्य धातुएं, धन-धान्य, पशु एवं अन्य वस्तुओं की एक सीमा-रेखा निश्चित करे और उसका अतिक्रमण नहीं करे। व्यक्ति में संग्रह की स्वाभाविक प्रवृत्ति है और एक सीमा तक गृहस्थ जीवन में संग्रह आवश्यक भी हैं परिग्रह परिमाणव्रत या इच्छा परिमाणव्रत इस संग्रह वृत्ति को नियंत्रित करता ___ श्रावक जो कुछ भी संग्रह करता है वह केवल धर्मसाधना में बाधक ऐसे संक्लेश-असमाधि से बचने के लिए जरुरी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करता है। वह संतोष पूर्वक स्वयं की और अपने आश्रितों की उचित इच्छाओं को पूर्ण करता हैं। इस व्रत में श्रावक-श्राविका नव प्रकार के बाह्य परिग्रह की मर्यादा रखते हैं। 1. क्षेत्र - खेत, बाग आदि खुली भूमि। arg हिरण्य 2. वास्तु - मकान, दुकान, कारखाना 3 चाँदी आदि। रवेत, बाग आदि दुकान 3. हिरण्य - चाँदी के बर्तन, आभूषण आदि। क्षेत्र 49

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