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* श्रावक के 12 व्रत
गृहस्थ जीवन को धर्माचरण युक्त पवित्र रखने के लिए जिन आत्मोन्नतिकारक आचार नियमों का | कथन किया गया है, उन्हें श्रावक व्रत कहा जाता है।
श्रावक के घर में जन्म लेने मात्र से ही कोई श्रावक नहीं बनता, पर सम्यक्त्व व व्रत ग्रहण करने वाला ही श्रावक कहलाता है। यह एक ऐसा गुण है जो जन्मजात प्राप्त नहीं होता, अर्जित करना पड़ता है। श्रावक के आचार धर्म को बारह व्रतों के रूप में निरूपित किया गया है। बारह व्रतों में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत हैं।
पाँच अणुव्रत - अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह।
तीन अणुव्रत - दिशा परिमाण, उपभोग परिभोग परिमाण एवं अनर्थ दण्ड विरमण व्रत ।
चार शिक्षाव्रत - सामायिक, देशावकासिक, पौषध एवं अतिथि संविभाग ।
अणुव्रत का अर्थ है- छोटा व्रत । साधु-साध्वी हिंसा आदि का पूर्ण रूप से परित्याग करते हैं, उनके व्रत महाव्रत कहलाते हैं, पर श्रावक-श्राविका उन व्रतों का पालन मर्यादित रूप से करते हैं, इसलिए उनके व्रत अणुव्रत कहे जाते हैं।
अणुव्रत जीवन को व्रत से युक्त रखते हैं, गुणव्रत उन्हें गुणों की पुष्टि देते हैं जिससे सावद्य योग निवृति का अभ्यास बढता है एवं शिक्षा व्रत से दैनिक जीवन में धर्मधारा का प्रवाह होता है। ये व्रत जीव को महाव्रतों को ग्रहण करने की योग्यता दिलाते है ।
बारह व्रतों की संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार है
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1. अहिंसा अणुव्रत या स्थूल प्राणातिपात विरमणव्रत : आचार्य उमास्वाती ने हिंसा की परिभाषा देते हुए लिखा है“प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा"
अतः प्रमाद एवं राग-द्वेष की प्रवृति त्याग कर स्थूल हिंसा का त्याग करते हुए शेष सूक्ष्म हिंसा का यथाशक्य त्याग करना अहिंसा अणुव्रत है। यह श्रावक के चारित्र धर्म का मूलाधार है क्योंकि अहिंसा परमोधर्म है एवं इसे अपनाने से अन्यव्रतों का निर्वाह स्वतः होने लगता है।
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सावधानी पूर्वक अहिंसा व्रत का पालन करते हुए भी प्रमाद या अज्ञानवश दोष लगने की संभावना रहती है। इस प्रकार के दोष अतिचार कहलाते हैं। अहिंसाव्रत अथवा स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत के पाँच अतिचार हैं जैसे:
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1. बंधन - मनुष्य, पशु आदि जीवों को निर्दयता पूर्वक कठोर बंधन से बाँधना, नौकर आदि को नियत समय से अधिक रोकना, कार्य लेना आदि।
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