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इस दृष्टि से समस्त कषायों के क्षीण होने के कारण साधक को अनेक लब्धियां प्राप्त होती है, केवलज्ञान प्राप्त करता है और वह मुमुक्षु जीवों के कल्याणार्थ उपदेश देता है। इस क्रम में योगी निर्वाण पाने की स्थिति में योग-सन्यास नामक योग को प्राप्त करता है, जिसके अंतिम समय में शेष चार अघाती कर्मों को नष्ट करके वह अ, आ, इ, ऋ, लृ, इन पांच अक्षरों के उच्चारण समय मात्र में शैलेषी अवस्था को प्राप्त करता है यानि मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
उपसंहार
समस्त विपत्ति रुपी लताओं को काटने के लिये योग तीखी धार वाला कुठार है तथा मोक्ष लक्ष्मी को वश में करने के लिए यह जड़ी-बूंटी, मंत्र-तंत्र से रहित कार्मण वशीकरण है। प्रचण्ड वायु 'जैसे घने बादलों की श्रेणी बिखर जाती है, वैसे ही योग के प्रभाव से बहुत से पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
क्र. दृष्टि 1. मित्रा
2. तारा
3. बला
4. दीप्रा
5. स्थिरा
अष्टांग योग उपमा
7. प्रभा
यम
नियम
आसन
प्राणायाम
प्रात्याहार
6. कान्ता धारणा
ध्यान
8. परा समाधि
आठ योग दृष्टियां
रुचि
देव पूजादि धार्मिक अनुष्ठान में रुचि ।
वैराग्य वर्धक योग कथाएं सुनने में रुचि ।
सत्कर्म करते हुए समता का विकास ।
संदेह रहित धर्म पर श्रद्धा |
सम्यक्त्व की शुरुआत होने से सचिन्तन, सद्व्यवहार में रुचि ।
सम्यक् ज्ञान की प्राप्ति से स्व और पर का बोध ।
ज्ञान की साक्षात् उपलब्धि से आत्म साधना की उच्च अवस्था बनती है।
क्षपक श्रेणी द्वारा संपूर्ण आत्म विकास ।
तृण की अग्नि
गोबर (उपले) की अग्नि
काष्ठ की अग्नि
दीपक की ज्योति
रत्नों की प्रभा
तारे की प्रभा
सूर्यप्रकाश
चन्द्रमा की प्रभा
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विशेषता
मिथ्यात्व
मिथ्यात्व
मिथ्यात्व
मिथ्यात्व
सम्यक्त्व
सम्यक्त्व
सम्यक्त्व
सम्यक्त्व