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रहता है। बिना किसी अपेक्षा के वह मात्र स्व कर्तव्य के परिपालन में जागरुक रहता है। सदेव - स्वधर्म और स्व-स्वरुप में निमग्न रहता है।
हस्तिनापुर नगर के बाहर राजपथ के किनारे ध्यान मग्न एक ऋषि को देखकर पांडवों के कदम रुक गये। यह ऋषि कौन है ? ओ हो ! यह तो दमदन्त राजर्षि है। जिन्होंने हमें युद्ध में परास्त किया था, आज वे काम - क्रोधादि शत्रुओं को पराजित कर रहे हैं ! धन्य है, इनकी साधना, धन्य है इनका तप और त्याग। पांडवों ने नतमस्तक होकर वंदन किया और आगे बढ़ चले। कुछ ही समय पश्चात् कौरवों का आगमन हुआ। वे भी रुक गये। ये ऋषि कौन है ? अच्छा ! ये दमदन्त राजा। युद्ध क्षेत्र में हम पर कैसी बाण वर्षा की थी। ये तो हमारा शत्रु है। आज अच्छा अवसर आया है प्रतिशोध का। सभी कौरवों ने पत्थर, कंकर, मिट्टी उछालना प्रारंभ किया। कुछ ही देर में तो पत्थरों का मानो चबूतरा बन गया। कौरवों के जाने के बाद जब पांडव पुनः उस राह से गुजरे तो वहाँ की स्थिति देखकर सारी घटना समझ गये। पत्थरों को हटाया, मुनि की देह पुनः निरावत हो गयी। पांडव वंदन कर अपने महल की ओर चले गये। दमदन्त राजर्षि पूर्ववत उपशांत थे - न पांडवों के प्रति राग न कौरवों के प्रति द्वेष। यह शुक्ल लेश्या की उच्च परिणति है।
लेश्याओं को समझने के लिए जैनागम में जामुन का एक प्रसिद्ध दृष्टांत दिया गया है। छः मित्र यात्रा करते हुए एक बगीचे में पहुँचे। वहाँ उन्होंने फलों से लदा जामुन का एक वृक्ष देखा। सबके मन में फल - खाने की इच्छा पैदा हुई।
पहला मित्र (कृष्ण लेश्या) ने कहा - मित्रों ! चलो इस वृक्ष को गिरा लें, फिर आराम से जामुन खायेंगे। यह मनुष्य इतना व्यग्र और लालची है कि उसे अपनी भूख मिटाने या स्वाद के लिए जामुन के इस वृक्ष को काटने के लिए तत्पर है।
दूसरा मित्र (नील लेश्या) ने कहा - पूरा वृक्ष गिराने से क्या लाभ ? बडी - बडी डालियां तोड लेते है, जिनमें जामुन लगे हुए है।
तीसरा मित्र (कापोत लेश्या) ने विचार दिया - भाई ! सभी डालियां बेकार में क्यों काटते हो ? जिन डालियों पर फल के गुच्छे लगे है, केवल उन्हीं डालियों को ही हम काट लेते है, तब भी हमारा काम हो जाएगा।
चौथा मित्र (तेजोलेश्या) ने कहा - नहीं ! नहीं ! शाखाएँ तोडना अनुचित है। फल के गुच्छे तोडना ही पर्याप्त होगा।
पाँचवा मित्र (पद्मलेश्या) ने मधुर स्वर में अपने विचार दिये - अरे भाईयों ! फल के गुच्छे तोडने की क्या आवश्यकता है ? इसमें तो कच्चे - पक्के सभी होंगे। हमें तो पके मीठे फल खाने हैं, फिर कच्चे फलों को क्यों नष्ट करें ? ऐसा करो - पेड को झकझोर दो, पके - पके फल गिर जायेंगे।
छट्ठा मित्र (शुक्ल लेश्या) करुणार्द्र होकर कहने लगा - क्यों पेड को झकझोरते हो, वृक्ष को क्षति क्यों पहुँचाते हो ? जमीन पर कितने ही पके पकाए फल गिरे पडे है। इन्हें ही उठा लो और खा लो।
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