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ये सभी लेश्याएँ द्रव्य और भाव दो प्रकार की होती है।
1. द्रव्य लेश्या :- आत्मा द्वारा ग्रहण किए गए जो पुद्गल - परमाणु लेश्या रुप परिणमन करते है, उन्हें द्रव्य लेश्या कहते है। ये वर्ण, गंध, रस, स्पर्श सहित होते है।
2. भाव लेश्या :- आत्मा का अध्यवसाय या अंतःकरण की वृत्ति को भाव लेश्या कहते है।
प्रथम तीन लेश्याएँ अशुभ है और बाद की तीन शुभ है। अशुभ लेश्याएँ जीव को दुर्गति में तथा शुभ लेश्याएँ जीव को सद्गति में ले जाती है।
1. कृष्ण लेश्या :- पाँच आश्रव का सेवन करनेवाले, छः काय हिंसक, आरंभी, क्रूरता से जीव हिंसा करने वाले जीव कृष्ण लेश्या वाले होते हैं। इस अवस्था में व्यक्ति के विचार अत्यंत निम्न कोटी के क्रूर, असंयमी एवं अविवेकी होते है। अपनी शारीरिक, मानसिक एवं वाचिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते है। अपने इंद्रिओं पर नियंत्रण न रख पाने के कारण सदैव इंद्रियों के विषयों की पूर्ति में निमग्न रहते है। विषयों की पूर्ति के लिए हिंसा, चोरी, व्यभिचार आदि हिंसक कार्य करने में उन्हें तनिक भी अरुचि नहीं होती है। अपने छोटे से स्वार्थ के कारण दूसरे का बडा से बडा अहित करने में संकोच नहीं करते। मात्र यही नहीं वह दूसरों को निरर्थक पीडा एवं त्रास देने में आनंद मानते है। ऐसे मनुष्य के मन में मलीनता भरी होने के कारण सामान्यतः उसका मुख मंडल भी भयानक तथा क्रूरता से युक्त दिखाई देता है।
2. नील लेश्या :- जो व्यक्ति अपने को सुरक्षित रखता हुआ अन्य को हानि पहुँचाने की चेष्टा करता है, वह नील लेश्या वाला होता है। इस अवस्था के जीव विषय वासना से युक्त मायावी, कपटी, मृषावादी, ईर्ष्याल. कदाग्रही. रसलोलप. अति निद्रा लेनेवाला एवं प्रमादी होता है। वह अपनी सुख - सुविधा का सदैव ध्यान रखता है और अपने हित के लिए दूसरों का अहित करता है। यहाँ तक कि वह अपने अल्प हित के लिए दूसरों का बडा अहित भी कर देता हैं। जिन प्राणियों से उसका स्वार्थ रहता है, उन प्राणि
पाणियों का अज पोषण न्याय के अनुसार वह कुछ ध्यान अवश्य रखता है, लेकिन उसकी मनोवृत्ति दूषित ही रहती है। जैसे बकरा पालनेवाला बकरे को इसलिए नहीं खिलाता कि उससे बकरे का हित होगा, वरन् इसलिए खिलाता है कि उसे मारने पर अधिक मांस मिलेगा। ऐसा व्यक्ति दूसरे का बाह्य रुप में जो भी हित करता दिखाई देता है, उसके पीछे उसका गहरा स्वार्थ रहता है।
3. कापोत लेश्या :- कृष्ण एवं नील लेश्या से कुछ शुभ किंतु अन्य लेश्याओं से मलिन चंचल परिणामों को कापोत लेश्या कहा गया है। उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार कापोत लेश्या वाला अत्यधिक हंसनेवाला, दुर्वचन बोलने वाला, चोर स्वभाव वाला होता है। उसकी कथनी-करनी भिन्न होती है। मनोभावों में सरलता नहीं होती, कपट और अहंकार होता है। वह अपने दोषों को सदैव छिपाने की कोशिश करता है। आत्म प्रशंसा और पर निंदा में तत्पर रहता है। दूसरे के धन का अपहरण करनेवाला एवं मात्सर्य भावों से युक्त होता है। फिर भी ऐसा व्यक्ति दूसरों का अहित तभी करता है जब उससे उसका स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है।
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