Book Title: Jain Dharm Darshan Part 05
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 26
________________ Doooo 28. मोक्षमार्ग गति : मोक्षमार्ग के साधनों का तथा नौ तत्वों का लक्षण आदि का वर्णन है। 29. सम्यक्त्व पराक्रम : इसमें संवेग, निर्वेद, धर्म श्रद्धा, आलोचना निंदा आदि 73 स्थानों का प्रश्नोत्तर रुप में धर्म कृत्य के फल का बड़ा ही अर्थ गंभीर वर्णन है। 30. तपोमार्गगति : इसमें बाह्य और आभ्यंतर तप के विषय में विस्तार से समझाया गया है। 31. चरण विधि : इस अध्ययन में 1 से 33 तक की संख्या को माध्यम बनाकर श्रमण चारित्र के विविध गुणों का वर्णन है। 32. प्रमाद स्थान : इसके प्रमाद स्थान अर्थात पांच इन्द्रियों को जीतना तथा राग-द्वेष-मोह का उन्मूलन करने का वर्णन है। 33. कर्म प्रकृति : ज्ञानावरणीय आदि कर्मों के नाम, भेद, प्रभेद तथा उनकी स्थिति एवं परिणाम का संक्षिप्त विवेचन है। 34. लेश्या : प्रस्तुत अध्ययन में छह लेश्याओं के नाम, लक्षण, उनके वर्ण, गंध, रस, स्पर्श आदि 11 द्वारों के माध्यम से वर्णन किया गया है। 35. अनगार : इसमें अनगार (साधु) के आचार का वर्णन है। 36. जीवाजीवविभक्ति : इसमें जीव के 563 भेदों का, अजीव के 560 भेदों का तथा सिद्ध भगवान के स्वरुप का वर्णन है। 3. दशवैकालिक सूत्र मूल आगमों में दशवैकालिक सूत्र का महत्वपूर्ण स्थान है। आचार्य शय्यंभव सूरि ने अपने पुत्र मनक की अल्पायु देखकर आगमों में से इस सूत्र का संकलन किया। मनक जब अपने पिता आचार्य शय्यंभव सूरि का पास दीक्षित हुआ तब आचार्य को अपने ज्ञान उपयोग से पता चला कि इसकी आयु मात्र छ मास की है। इतने अल्पकाल में मुनि अपनी सफल साधना से आत्महित कर सके, इस भावना से आचार्य शय्यंभव सूरि ने इस सूत्र का संकलन किया। मनक मुनि ने छह मास में इस सूत्र को पढा और वह समाधिपूर्वक सद्गति को प्राप्त हुए। आचार्य को इस बात की प्रसन्नता थी कि उसने श्रुत और चारित्र की सम्यक् आराधना की अतः उनकी आंखों से आनंद के आंसू छलक पड़े। उनके प्रधान शिष्य यशोभद्र ने इसका कारण पूछा। आचार्य ने कहा "मनक मेरा संसार पक्षीय पत्र था इसलिए कछ स्नेह भाव जागत हआ।" वह आरा हुआ यह प्रसन्नता का विषय है। मैंने उसकी आराधना के लिए इस आगम का नि!हण किया है। अब इसका क्या किया जाय ? संघ ने चिन्तन के पश्चात् यह निर्णय किया कि इसे यथावत् रखा जाय। यह मनक जैसे अनेक श्रमणों की आराधना का निमित्त बनेगा। इसलिए इसका विच्छेद न किया जाय। प्रस्तुत निर्णय के पश्चात् दशवैकालिक का जो वर्तमान में रुप है उसे अध्ययन क्रम से संकलित किया गया है। महानिशीथ सत्र के अनुसार पांचवें आरे के अंत में पूर्णरुप से अंग साहित्यों का विच्छेद हो जायेगा तब दुप्पसह मुनि दशवैकालिक के आधार पर संयम की साधना करेंगे और अपने जीवन को पवित्र बनायेंगे। IASirsana

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