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संकेत है। इसलिए इसका नाम 'चित्तसंभूतीय' है। पुण्य कर्म के निदान बंध के कारण संभूत के जीव (ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती) का पतन तथा संयमी चित्तमुनि का उत्थान बताकर जीवों को धर्माभिमुख होने का तथा उसके फल की अभिलाषा न करने का उपदेश दिया गया है।
14. इक्षुकारिय: इस अध्ययन में इक्षुकार राजा, कमलावती रानी, भृगु पुरोहित, उसकी पत्नी और दो पुत्र इन छह पात्रों का वर्णन हैं। इस अध्ययन में अनित्य भावना का उपदेश है।
15. सभिक्षुक : भिक्षु यानि साधु मुनि। इसमें साधुओं के लक्षणों का वर्णन है।
16. ब्रह्मचर्य समाधि : मन, वचन, काया से शुद्ध ब्रह्मचर्य कैसे पाला जा सकता है, इसके लिए दस हितकारी वचन, ब्रह्मचर्य की आवश्यकता, ब्रह्मचर्य पालन का फल आदि का विस्तृत विवेचन है।
17. पाप श्रमणीय: पापी श्रमण का स्वरुप, श्रमण जीवन को दूषित करने वाले सूक्ष्माति सूक्ष्म दोषों का विवेचन इस अध्ययनमें किया गया है।
18. संयतीय: प्रस्तुत अध्ययन में राजा संजय का वर्णन हैं।
19. मृगापुत्रीय: इस अध्ययन में मृगापुत्र का माता-पिता के साथ संवाद है। उसमें संयम की दुष्करता और दुर्गति के दुःखों का हृदय स्पर्शी वर्णन है।
20. महानिर्ग्रथीय : इसमें अनाथी मुनि और राजा श्रेणिक के बीच हुई सनाथना - अनाथता विषयक मार्मिक विचार चर्चा हैं |
21. समुद्रपालि : चंपानगरी के श्रावक पालित का चारित्र, उसके पुत्र समुद्र पाल को एक चोर की दशा देखकर उत्पन्न हुआ वैराग्य भाव उसका त्याग और उसकी अडिग तपस्या का वर्णन है ।
22. रथमीय: इसमें नेमिनाथ भगवान द्वारा प्राणियों की रक्षा के लिए राजीमती के परित्याग का वर्णन है तथा राजीमती के रूप पर मोहित रथनेमि का मन जब पथभ्रष्ट होने लगता है तब राजीमती ने किस प्रकार रथनेमि को संयम में दृढ़ किया, यह भी वर्णन किया है।
23. केशीगौतमीय: इसमें भगवान पार्श्वनाथ के शिष्य केशी श्रमण और भगवान महावीर स्वामी के शिष्य गौतम स्वामी के बीच एक ही धर्म में सचेल अचेल, चार महाव्रत और पांच महाव्रत परस्पर विपरीत विविध धर्म के विषय भेद को लेकर संवाद व समन्वय दर्शाया गया है।
24. प्रवचन माता : पाँच समिति और तीन गुप्ति इन आठ प्रवचन माताओं का विस्तृत विवेचन है।
25. यज्ञीय : इस अध्ययन में जयघोष मुनि, विजयघोष ब्राह्मण को यज्ञ की हिंसा से कैसे बचाते है यह वर्णन है।
26. सामाचारी : इसमें साधु की दिनचर्या का वर्णन है।
27. खलुंकीय : इसमें गर्गाचार्य द्वारा दुष्ट शिष्यों के परित्याग का वर्णन है।
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