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8. निरयावलिया (कल्पिका) : प्रस्तुत आगम के दस अध्याय है जिसमें राजा श्रेणिक के काल, सुकाल आदि दस पुत्रों की कथाएं है। ये सभी अपने बडे भाई कोणिक (चेलना का पुत्र) व चेडा महाराजा के बीच हुए युद्ध में स्वर्गवासी हुए थे। इन कुमारों की मृत्यु के समाचार सुनकर उनकी माताओं को वैराग्यभाव उत्पन्न होने से भगवान महावीर स्वामी के पास दीक्षा ग्रहण कर आत्म कल्याण किया। साथ ही कोणिक का चेलना रानी के गर्भ में आना, चेलना का दोहद, दोहद की पूर्ति, कोणिक का जन्म, राज्य प्राप्ति के लिए कोणिक का अपने पिता श्रेणिक को काराग्रह में डालना, श्रेणिक की मृत्यु आदि का वर्णन है।
9. कल्पावतंसिका : इसमें राजा श्रेणिक के पद्म- महापद्म आदि दस पौत्रों की कथाएं है। सब ने भगवान महावीर स्वामी के पास दीक्षा ली थी । श्रमण पर्याय का पालन करके ये सब देवलोक में उत्पन्न हुए। वहां से च्यवकर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेंगे और वहां से मुक्ति प्राप्त करेंगे।
10. पुष्पिका :
पुष्पिका आगम के दस अध्ययनों में चन्द्र, सूर्य, शुक्र, पूर्णभद्र, मणिभद्र आदि की कथाओं का वर्णन है। ये सब ज्योतिषी देव है। भगवान महावीर स्वामी के समवसरण में आकर इन्होंने विविध प्रकार के नाटक किये। उनकी ऐसी उत्कृष्ट ऋद्धि को देखकर गौतम स्वामी ने भगवान महावीर स्वामी से प्रश्न किया कि इनको यह ऋद्धि कैसे प्राप्त हुई। तब भगवान ने इनके पूर्व भव बतलाये कि इन्होंने अपने पूर्व भव में दीक्षा ली थी, किन्तु फिर ये विराधक हो गये। इस कारण ज्योतिषी देवों में उत्पन्न हुए है। वहां से च्यवकर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेंगे और संयम धारण कर मोक्ष प्राप्त करेंगे। साथ ही सोमिल ब्राह्मण और भगवान पार्श्वनाथ का संवाद एवं बहुपुत्रिया देवी का अधिकार हैं।
11. पुष्प चूलिका :
पुष्प चूलिका उपांग के दस अध्ययनों में से क्रमशः एक-एक में श्री, ह्रीँ, घृति, कीर्ति आदि दस ऋद्धिशालिनी देवियों के पूर्व भवों का वर्णन हैं। इन सभी देवियों ने भगवान महावीर स्वामी के समवसरण में उपस्थित होकर विविध प्रकार के नाटक दिखाये थे । गौतम गणधर के पूछने पर भगवान ने इनके पूर्व भव बतलाये कि इन्होंने पूर्व भव में दीक्षा ली थी और फिर विराधक हो जाने के कारण यहां देवी के रुप में उत्पन्न हुई है। अब यहां से च्यवकर महाविदेह क्षेत्र में ये जन्म लेंगी और वहीं से मोक्ष प्राप्त करेंगी।
12. वृष्णिदशा :
प्रस्तुत आगम में द्वारिका के राजा श्री कृष्ण वासुदेव का बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि के रैवतक पर्वत पर विहार करने का तथा बलदेव के निषध-अनिय आदि बारह पुत्रों का वर्णन है। ये सभी भगवान अरिष्टनेमि के पास दीक्षा अंगीकार करके सर्वार्थ सिद्ध विमान में देव हुए। वहां से च्यवकर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेंगे और वहीं से मोक्ष प्राप्त करेंगे।
मूल सूत्र
जैसे वृक्ष का मूल दृढ़ हो तो वह चिरकाल तक टिका रहता है और अच्छे फल देता है, उसी प्रकार नीचे
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