Book Title: Gyanand Ratnakar Author(s): Nathuram Munshi Publisher: Lala Bhagvandas Jain View full book textPage 9
________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर । संवन नित्य को । हिन्मा चांगे झूठ बोलना आदि पापा से नहीं डरें ।। अपने दोप छिपाने को मिथ्या उपाय रचग्रन्थ भो । नेद शास्त्र के शब्दार्थ के बदलन में पुटिलना धरै ।। तिनका वर्णन सुनों कानदे जैमी शाखि वे उग भरते । काम कोय मद मोह लोभ वश आप निन्द्य कार्य करते ॥ १ ॥ अति उत्तम यदुवंश तहा श्रीकृष्ण हुए हरिपद धारी । नातिवान विद्वान तिन्हें कहने पर त्रिय रन ठाभिचारी ।। है गोपिका रमी कृष्ण ने जोषी गवालों की नारी। राया कम्ज शादि सहस्र मोल यह पाप धर भारी ॥ ऐमी तो निन्दा करते अरु मक्त बने भारी धरने । काय कोच पद मोह लोभ वश आप निदय कार्य काने ॥२॥एक समय कई नग्न गोपिका करतीथीं जल में स्नान । सटपर चार घरे मद मोलेके कदम पर चढ़ गया कान || तब गोपी लज्जित होके का जोड वीर मांगे पहिचान । पर हरिने ना दिये कहा तन नग्न दिखाओस. न्मुख शान || जन देखी सब नग्न कई तब डाले चीर हरि तरूपते । काम कोच पद मोह लोभ यश प्राप निंदय कार्य करत ॥ ३ ॥ कहै कृष्ण मनिहार नाचिन ग्रज वनिनों में कीना छल । लूट चोरि माग्वन दधिता इंस'का तिन के कुर देने मन ।। रत्यादिक अति दुराचार कृत्रिया कृष्ण की बताते खन । जो जग में अत्यंत नियमों को करी हरिमाया बल || भक्त बने अरु निन्ना करते महा पाप नही डाने । काम क्रोध मद मोह लोग यश भाप निंद्य कार्यकरने ॥ ४ ॥ो कहे को भूल जानो तो देखो भागवन में पढकर । पढे न हो तो मुनो भाग मे दमो लिखा इसमे बढ़कर | झटी पन्न गहो मताठ से मूढ विवाद को लहकर । देखा को निन्दा करत सो हृदय विचार करो दृहकर । नाक काट पाछे दुशान में वही पशन राठ पाचरते । काम क्रोध मद गोह लोभ यश प्राप निंद्य कार्य करते ॥ ५ ॥ वालपने में कृष्ण विपत्ति वशरहे नन्द यशुमा के बाप । वहा अवश्य नित धेनु चराई अन्य चुग ना कीना काम ॥ युद्ध क्रिया वनभद्र मिग्याई छिप छिपके जागोकुल ग्राम । कम मार जा यमे द्वारिका पार्षशिल संग नमाम ॥ नीति राज्य किया श्रीकृष्णने झूठे दोप धरै खरते । काग क्रोध मन मोह लोभ वश भापगिय कार्य करते ॥ ६॥ पूज्य पुरुष पाडव तिन की उत्पनि करोगे से खल । कहे पंच भरतारी द्रोपदी द्रुपद सुता गो सनी विमल ॥ सन्मान को यन्दर कहते जो विद्याधर नृप अतिवल । महापुरुष के पूंछ लगाने और भक्त बनते निश्चल ।। इससे निंदा अधिक और क्या घशुःPage Navigation
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