Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

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Page 56
________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर। छः योजम प्रोडा परवान । है सुन्दर स्थान महान ॥ ॥दोहा॥ इकशन सादेतीस इक ( १३१॥ ) डेढ़ कना विस्तार । यह कह निज विद्या दई अरु रत्नों का हार ॥ घसे मेघ वाहन त जाके कुटुम सहित अति हाई। तिसका वर्णन सुनो नो श्रवणो को पानंद दाई ॥३॥ ता राक्षसकुला में असंख्पनृपभये सोनिजकरणीअनुसार। कोई शिवपुर गये किनही मुर के सुख लिये अपार ॥ कोई पापकरगये अयोगति भ्रमतभये घरगतिदुःनकार । मुनि मुनत के समय में विद्युत केश भये नृपसार। ॥चौपाई॥ तिनके पुत्र सुकेश मुजान । इन्द्रानी तिसके त्रिय जान ॥ तीन पुत्र ताके गुणवान । भये सुवीर महा बलवान ॥ ॥दोहा॥ माली और मुमानी अरु मान्यवान विन नाम । सुमाली के रत्नश्रवा पुत्र भया गुणधाम ॥ भई केकसी रानी ताके जासु कीर्ति जगमें गाई । तिसका वर्णन मुनो जो श्रवणों को आनंददाई ॥५॥ रत्नश्रया त्रिय के कसीके सुत तीन महा बलवान भये । एहिला रावण द्वितिय सुत कुम्भकरण गुणघामठये ॥ तृतिय विभीषण कुल के भूषण जिनने शुभगुण सर्वलये। तीनों योद्धा अनूपम तिनको भूप अनेक नये ॥ २ ॥चौपाई॥ सूर्य नखा तिन बहिन प्रधान । भई अनुपम रूपमहान ॥ खर दूषण परणी बुधिचान । बसेलंक पाताल मुजान ।।

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