Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

View full book text
Previous | Next

Page 93
________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर। महराज बरेगी अव शिवरानी जी । श्री नेम घातिया घाति भये प्रभु केवल ज्ञानीनी, वह भव्यन को सम्बोधि अघातिय पाते, महराज सर्व भवकी थिति हानजी || वर अविनाशी पदपाय दियाजगको कर पानी जी, कहैं नाथूराम जिनभक्त सुनो जगत्राता, निजभक्ति देहु अरु मैटो सबै असाता । महराज लियापद पद्मसहारा जी, गहि ज्ञानचक्र करवक्र मोहभट क्षण में माराजी५॥ गणेश की व्याख्या ७॥ गणधर गणेश गणीन्दू गणपति आदि नाम बहु सुखदाई, तिनका वर्णन जिनागम के अनुसार सुनो भाई | टेक ॥ महाईश श्रीमहेश जिनवर महादेव देवच के देव, तिनको याणी गिरा सो द्वादश अंग खिरै स्वयमेव । तिनअंगों को मथे करें अभ्यास होय तत्र गणधर देष, मिराअंगके मथन से यो गणेश भाप जिन देव ॥ शेर। यती ऋपी मुनि अनागार समूह को गण जानजी, तिस गणके ईशगणेश ऐसी संधि गुण पहिचान जी । सो शारदा वाणी जिनेश्वर कीधरे उरम्यान जी. यो शारदा के पति कहे गणराज बुद्धि निधान जी । सो देवॉकर पूज्य गणाधिप विमल कीर्तिजग में छाई, तिनका वर्णन जिनागम के अनुसार सुनो भाई ॥ १ ॥ घटें प्रतिष्ठा कटे नाक अरु वढ़े प्रतिष्ठा वढ़े सही, इस उपमा को दिखाने नाक बड़ा गज इंडिकही । सवमुनिगण में बड़ी प्रतिष्ठा गणपति की जमवीघ लही, बड़ी नाशिका बताई गणेश की सो हेतुयही ॥ शेर। मुख्य वक्ता जो सभामें विपुल विद्या का धनी, झपे न बोले गर्जिके नि. . शंक छवि जिसकी बनी । तिसका बड़ामुख सयकह पावे प्रतिष्ठा वयनी ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 91 92 93 94 95 96 97