Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

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Page 78
________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर। वचन यजूक शल जी ॥ ३ ॥ आप अधिक प्रारम्भ करत औरों को शिक्षा देत, प्रभावना अंग अधिक अघ हेतजी, वर्णन कहतक करों इसी विधि सर्व गुणों के खेत, कौतुकी पर दुःख देते प्रेतजी, देख सुयश पर जलत सदा ज्यों भटिओर की चूल । कि जिनके वचन वजू के शूल जी ॥ ४ ॥ चिटीकी करते दया ऊंट को सावित जात निगल, दया के भवनं ऐसे निश्चलजी , वनस्पती की रक्षा को वहु त्यागे मूलरु फल. ठों पंचेंदिन को कर छल जी गन्लादिक में हने अनन्ते निस दिन त्रस स्थूल । कि जिनके वचन बज के शूल जी ॥ ५ ॥ मिथ्या यश के लोभी इससे नित करत प्रशंसा नित्त, चाप लोसियों से राखत हित्तजी, सत्य कहै सो लगे जहरसा जले देखकर चित्त, बात सुन ताकी कोपे पित्तजी, ऐसी प्रकृति सज्जन कर निंदित डालो इसपर धूल । कि जिनके वचन वजू के शूल जी ॥ ६ ॥ एक विनय मैं करों आपसे श्राप विवेकी महा, क्षमा कीजियो मैने जो कहाजी, कविताई की रीति झूठ दुर्वचन जाय ना सहा, दिये विन ज्वाव जाय ना रहाजी, मत मनमें लज्जित होके अपघात कीजियो भूल । कि जिनके वचन वजू के शूलजी ॥ ७ ॥ पर निंदा अरु आप वड़ाई करें सो हैं नरनीच, वनें अति शुद्ध लगा मुख कीच जी, वेशर्मी से नहीं लजाते चार जनों के बीच, पक्ष अपनी की करते खींच जी, नाथूराम जिन भक्त करें बहु कहें तक वर्णन थूल । कि जिनके वचन वजू के शूलजी ॥ ८॥ जिनेंद्र स्तुति ५५। न देखा प्रभु तुमसा सानीजी वर निज गुण का दाना ।।टेक ॥ स्वार्थीदेव नजर आते, नाशिव मग वतलाते । प्रापही जो गोते खाते, तिनसे को मुख पाते, नहीं तुमसा केवल ज्ञानीजी, वरनिज गुण का दानी ॥ १ ॥ निकट संसार मेरेआया जो तुम दर्शन पाया । लखत मुख उर आनन्द छाया , सो जाय नहीं गाया ,दरश थारा शिव सुख खानीजी, वर निजगुणका दानीजी बहुत प्राणी तुमने तारे जोथे दु:खिया भारे । गहे मैं चरण कमलथारे, सव ।

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